परेशान हो गए होंगे आप
लगातार तीन दिनों से
हम ही हम है
कल भी शायद हम ही रहेंगे
सादर अभिवादन...
चलिए चलते हैं रचनाओँ की ओर....
लगातार तीन दिनों से
हम ही हम है
कल भी शायद हम ही रहेंगे
सादर अभिवादन...
चलिए चलते हैं रचनाओँ की ओर....
इसरो
का सफ़र अंतहीन
मात्र विरमित हुआ ,
विसर्जित नहीं ......
पुनः गमित होगा अनंत पथ ,
लिखने को अनंत गाथा
अंतरिक्ष की, रहस्य की,
जीने की बात न कर
लोग यहाँ दग़ा देते हैं।
जब सपने टूटते हैं
तब वो हँसा करते हैं।
कोई शिकवा नहीं,मालिक !
वो दिन भी बड़े सुहाने थे,
हम दुनिया से बेगाने थे।
बस प्यार के हम परवाने थे,
कुछ खोए-खोए से रहते थे।
विदा लेते वक्त
उसके आँखों मे आँसू थे
पत्थर का ह्दय उसका
शायद पिघल कर मोम हो गया था
जब कहीं
कुछ नहीं बचता है
शून्य में ताकता
समझने की
कोशिश करता
एक समझदार
समझ में
नहीं आया
नहीं
कह पाता है।
....
चाँद ने गड़बड़ कर दी
परमीशन दे देता तो
उसका क्या बिगड़ता...आखिर
वो चाँद ही कहलाता
भारत तो नहीं हो जाता
बात समझने ही की है
सादर
यशोदा
परमीशन दे देता तो
उसका क्या बिगड़ता...आखिर
वो चाँद ही कहलाता
भारत तो नहीं हो जाता
बात समझने ही की है
सादर
यशोदा
क्या बिगड़ जाता..
ReplyDeleteजोरदार तंज..
सादर...
हम कर्मपथ पर रहे , जिससे मौत किसी प्रकार के अफसोस के लायक न हो, वहीं ज़िंदगी है।
ReplyDeleteअपने कार्यक्षेत्र में हम आदर्श और अनुकरणीय कहलाएँ। अपने पदचिह्न छोड़ जाए, यही ज़िंदगी है। दो दिन की ज़िदंगी में मनुष्य मनुष्य से स्नेह न करें । वह मन, वाणी एवं कर्म से हिंसक हो। तो इस संसार का यह सबसे बुद्धिमान प्राणी किस लिए उत्पन्न हुआ है ? किसी का दुख- दर्द बांट लें। ज़िंदगी सार्थक हो जाएगी यदि ऐसा न भी कर सकें , तो हम इतना अवश्य करें ही कि हमारे आचरण से किसी निर्दोष का निश्छल हृदय आहत न हो..।
मेरी अनुभूति को स्थान देने और इस सार्थक प्रस्तुति के लिये आपका आभार , प्रणाम।
" फूलों पर आंसू के मोती, और अश्रु में आशा, मिट्टी के जीवन की छोटी, नपी-तुली परिभाषा।"
- रामधारी सिंह ' दिनकर ': कुरुक्षेत्र
बहुत खूबसूरत संकलन ... हर लिंक बेहतरीन..समर्पित भाव से आप की काम करने की लगन को नमन ।
ReplyDeleteनेहरू जी होंगे कहीं जरूर ओरबिट में। सुन्दर प्रस्तुति। आभार यशोदा जी।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति
ReplyDeleteआज विक्रम के चांद पर होने की आर्बिटर
ने पुष्टि कर दी,क्या पता कल संपर्क हो जाए,उम्मीद पर दुनिया कायम है।हम चांद पर तो पहुंच ही गए।
सभी लिंक उत्तम ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार दीदी।