सादर अभिवादन
कुछ विचार जो हम
कभी नहीं विचार करते..
लेकिन विचार करना चाहिए
“आत्मविश्वास“
रावण का-सा
नहीं होना चाहिए
जो समझता था कि
मेरी बराबरी का कोई है ही नहीं।
“आत्मविश्वास“ होना चाहिए
विभीषण-जैसा,
प्रह्लाद-जैसा।”
ल्लो करलो बात
मैं भी क्या लेकर बैठ गई..
अब तक प्रकाशित चुनिंदा रचनाएँ इस प्रकार...
चादर सन्नाटे की .... कैलाश शर्मा
चारों ओर पसरा है सन्नाटा
मौन है श्वासों का शोर भी,
उघाड़ कर चाहता फेंक देना
चीख कर चादर मौन की,
लेकिन अंतस का सूनापन
खींच कर फिर से ओढ़ लेता
चादर सन्नाटे की।
तो लगा तुम आ गये...... डॉ. ज़फर
जब कोयल गीत गाने लगी ,
मोरनी इतराने लगी,
मौसम में रंगत,
सांसो में खुशबु महकाने लगी ,
पपीहे ने जब हूक उठायी,
छत से जब बारिश बुद्बुदायी,
तो लगा तुम आ गये ........
अलविदा ओ रात... आशा सक्सेना
परिंदे पंख फैला कर उड़ चले हैं व्योम में
ऊंचाई तक पहुँच की होड़ लगी है उन में
अलविदा आलस्य तेरा शुक्रिया
की है नवऊर्जा संचित तेरा शुक्रिया
"धीमा जहर" ....विभा रानी श्रीवास्तव 'दंतमुक्ता'
सैन फ्रांसिस्को जाने के लिए फ्लाइट का टिकट हाथ में थामे पुष्पा दिल्ली अन्तरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर बैठी थी.. अपने कंधे पर किसी की हथेली का दबाव महसूस कर पलटी तो पीछे मंजरी को खड़े देखकर बेहद खुश हुई और हुलस कर एक दूसरे को आलिंगनबद्ध कर कुछ देर के लिए उनके लिए स्थान परिवेश गौण हो गया...
"बच्चें कहाँ हैं मंजरी और कैसे हैं ? हम लगभग पन्द्रह-सोलह सालों के बाद मिल रहे हैं.. पड़ोस क्या बदला हमारा सम्पर्क ही समाप्त हो गया..,"
खेल ...ओंकार जी
सुन्दर पतंग डोर से कटकर
किसी पेड़ में अटक जाती है,
तो बच्चे लंबे बांस लेकर
उस पर झपट पड़ते हैं.
आज छुट्टी का दिन है
इतना ही काफी है
यशोदा..
कुछ विचार जो हम
कभी नहीं विचार करते..
लेकिन विचार करना चाहिए
“आत्मविश्वास“
रावण का-सा
नहीं होना चाहिए
जो समझता था कि
मेरी बराबरी का कोई है ही नहीं।
“आत्मविश्वास“ होना चाहिए
विभीषण-जैसा,
प्रह्लाद-जैसा।”
ल्लो करलो बात
मैं भी क्या लेकर बैठ गई..
अब तक प्रकाशित चुनिंदा रचनाएँ इस प्रकार...
चादर सन्नाटे की .... कैलाश शर्मा
चारों ओर पसरा है सन्नाटा
मौन है श्वासों का शोर भी,
उघाड़ कर चाहता फेंक देना
चीख कर चादर मौन की,
लेकिन अंतस का सूनापन
खींच कर फिर से ओढ़ लेता
चादर सन्नाटे की।
तो लगा तुम आ गये...... डॉ. ज़फर
जब कोयल गीत गाने लगी ,
मोरनी इतराने लगी,
मौसम में रंगत,
सांसो में खुशबु महकाने लगी ,
पपीहे ने जब हूक उठायी,
छत से जब बारिश बुद्बुदायी,
तो लगा तुम आ गये ........
अलविदा ओ रात... आशा सक्सेना
परिंदे पंख फैला कर उड़ चले हैं व्योम में
ऊंचाई तक पहुँच की होड़ लगी है उन में
अलविदा आलस्य तेरा शुक्रिया
की है नवऊर्जा संचित तेरा शुक्रिया
"धीमा जहर" ....विभा रानी श्रीवास्तव 'दंतमुक्ता'
सैन फ्रांसिस्को जाने के लिए फ्लाइट का टिकट हाथ में थामे पुष्पा दिल्ली अन्तरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर बैठी थी.. अपने कंधे पर किसी की हथेली का दबाव महसूस कर पलटी तो पीछे मंजरी को खड़े देखकर बेहद खुश हुई और हुलस कर एक दूसरे को आलिंगनबद्ध कर कुछ देर के लिए उनके लिए स्थान परिवेश गौण हो गया...
"बच्चें कहाँ हैं मंजरी और कैसे हैं ? हम लगभग पन्द्रह-सोलह सालों के बाद मिल रहे हैं.. पड़ोस क्या बदला हमारा सम्पर्क ही समाप्त हो गया..,"
खेल ...ओंकार जी
सुन्दर पतंग डोर से कटकर
किसी पेड़ में अटक जाती है,
तो बच्चे लंबे बांस लेकर
उस पर झपट पड़ते हैं.
आज छुट्टी का दिन है
इतना ही काफी है
यशोदा..
बेहतरीन प्रस्तुति..
ReplyDeleteसादर..
बहुत सुंदर प्रस्तुति...आभार
ReplyDeleteपतंग की मौत
ReplyDeleteबच्चों के लिए एक खेल है,
इससे ज़्यादा और कुछ भी नहीं.
यह एक जीवन दर्शन है। कटी पतंग का फटी पंतग बनना तय है। जब तक हम अपने डोर से जुड़े हैं, तभी तक हमारी पहचान है और जहाँ स्वछंद हुये नहीं कि आकाश से धरातल पर आ गिरते हैं। यह स्थिति दूसरों के लिये तमाशा और हमारे लिये मौत ही है।
आश्रय का त्याग तो संत भी नहीं करता..।
सादर ,
प्रस्तुति सुंदर रही और यह रचना भी
सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुतीकरण
ReplyDeleteहार्दिक आभार छोटी बहना
ReplyDeleteसुप्रभात, शानदार प्रस्तुति।
ठीक कहा आपने आत्मविश्वास की अति से बचना चाहिए।
छीना-झपटी में जब
पतंग फट जाती है,
ज़मीन पर गिर जाती है,
तो उसके लिए मचल रहे बच्चे
उसे पांवों से कुचलकर
हँसते हुए आगे बढ़ जाते हैं.
उम्दा संकलन यशोदा जी |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत शानदार प्रस्तुति ।सभी रचनाएं उच्चस्तरिय।
ReplyDeleteसभी रचनाकारों को बधाई।