Monday, September 20, 2021

767 ..मुहब्बत की नदी में,बहे धार बनकर

सादर अभिवादन
मूसलाधार बारिश
भाद्र मास में..
क्वांर का महीना
बुढ़ौती बारिश की...

आज की सारी रचनाएँ
ब्लॉग अपराजिता से...
कई पुरस्कारों से सम्मानित
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
अभिनन्दन करती हूँ.



मुहब्बत के जल से , भरे ताल पोखर,
झर-झर झरनों से यूं झंझावात हो।

मुहब्बत की नदी में,बहे धार बनकर,
दूर -सुदूर तक यही जलजात हो।




चाय पीने का मजा कुल्हड़ में है।
अजी प्याले में वो खुशबू कहाँ
जो हमारा प्यारा कुल्हड़ में है।
स्वदेशी माटी की सोंधी- सोंधी,
भीनी -भीनी खुशबू से भरपूर।
पवित्रता व प्यार के लिए
सारी दुनियाँ में मशहूर।




निकट बगीचे से मंगली चाची,
सूखी लकड़ियां बीनकर
लायी।शाम ढली तो
वह घर के आगे,
उसे जोड़कर
अलाव
जलायी।
अलाव देखकर लक्ष्मी दादी,
लाठी टेक लपकती आई।
पारो काकी भी जब
देखी,झट से
आई फेक
रजाई।




भौंरे छेड़ते हैं  तान कभी बागों में मधुर,
कानों में गूंजे तेरी गीतों की गुनगुनाहट है।

जाड़े की नर्म धूप में तपन मिलती थोड़ी,
एहसासों में लगता तेरे साँसों की गरमाहट है।

जब पेड़ों पर विहग चहककर कलरव करते,
क्यूँ लगता है तेरी बातों की फुसफुसाहट है।



मैं बुरी लगती हूँ महफिल में  तुझे,
दिल में मेरा अक्स डालकर देखो।

क्यूँ  इतराते हो खुद पर मीत मेरे,
मन में जरा यह सवाल कर देखो।

तुझसे मेरी बस यही गुजारिश है,
मेरे साथ खुद को ढाल कर देखो।
....
सादर

7 comments:

  1. जाड़े की नरम धूप की मीठी उष्मा का सुखद अहसास हैं- सुजाता जी की पारिजात-सी मोहक रचनाएँ।

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  2. बहुत अच्छी सांध्य दैनिक मुखरित मौन प्रस्तुति

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद बहन !

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  3. आभार दीदी जी। धन्यवाद के लिए शब्द नहीं मिल रहे।आज के सांध्य दैनिक मुखरित मौन में सारी रचनाएं मेरी रहेंगी मैं तो कभी सोची नहीं थी। इतना मान और प्यार देने के लिए हृदय की गहराइयों से नमन।अपनी बहना पर यूं ही अपना आशीर्वाद बनाए रखें।

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  4. एक अलग से साहित्यिक आस्वादन देते सूत्र।

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