Monday, September 13, 2021

760 ...कंठ में सुर कौन भरता वाग्देवी ! वाग्देवी !

सादर अभिवादन
कल हिन्दी दिवस है
वैसे तो पंद्रह दिन पहले से ही हिन्दी
का  प्रचार-प्रसार  हिन्दी दिवस पखवाड़े 
के रूप में चल रहा है...आम दिवसों की भांति
नहीं है हिन्दी, सभी भारतीय भाषाओं को
देवनागरी भाषा मे ही बोला जाता है, 
सभी भाषाओं की अपनी लिपि है..पर 
बोलने के समय देवनागरी का भी उपयोग होता है
कोई भी बंगाली भाषा में नहीं रोता और न ही कन्नड़ में हंसता 
अब देखिए रचनाएँ ....



दिल घायल हुआ उसके नैन कटारे।
ओढ़ हया चूनर खुद में सिमटते है।।

कैसे बताऊं उसको दिले बेकरारी।
वो बदनामी से बहुत डरती है।।

जब जवां दिल धड़कते हैं साथ साथ।
इस प्यार को दुनियाँ गुनाह कहती है।।



इस सूखी दुनिया में प्रियतम मुझ को और कहाँ रस होगा?
शुभे! तुम्हारी स्मृति के सुख से प्लावित मेरा मानस होगा!

दृढ़ डैनों के मार थपेड़े अखिल व्योम को वश में करता,
तुझे देखने की आशा से अपने प्राणों में बल भरता,

ऊषा से ही उड़ता आया, पर न मिल सकी तेरी झाँकी
साँझ समय थक चला विकल मेरे प्राणों का हारिल-पाखी


उनींदी आँखों लिखने बैठा तेरी सहर की कली l
नज़्म ढलती गयी खुद ही नज़र की इस कली ll

जादू कर गयी तेरे ताबीज़ की वो कच्ची डोरी l
बंधी थी जिससे तेरे संग मेरे रूह की डोरी ll  

सुन तेरे पाक इबादत के नूरों को इस घड़ी l
सिमट मिटते गयी हर फासलों की ये घड़ी ll


राम नाम की महिमा सुनकर,हनुमत भ्रम से हर्षाए।
तेजस्वी साधू यह लगता,प्रभो नाम के गुण गाए।

शीश झुका चरणों में बोले,राम काज करने जाऊँ।
शक्ति बाण से बेसुध लेटे,लक्ष्मण के प्राण बचाऊँ।


कूक कोकिल को सुरीली
चेतना में प्राण भरती,
उल्लसित उर सहज होता
रात का ज्यों अलस हरती !

कंठ में सुर कौन भरता
वाग्देवी ! वाग्देवी !
कह रहे हर बोल में वे
कर रहे ज्यों वंदना ही !
....
बस आज के लिए


3 comments:

  1. आपका एकल संकलक प्रयोग बहुत अच्छा लगा। स्तरीय पढ़ने की इच्छा अब यहाँ ले आया करेगी।

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति।मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया।

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  3. बहुत सुंदर पठनीय संकलन । हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।

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