Saturday, September 11, 2021

758 ..ये काटे से नहीं कटते ये बांटे से नहीं बंटते

 सादर अभिवादन

आज क्षमा दिवस है
मन,वचन काया से
भूल से भी आपको ठेस लगी होगी
हृदय से क्षमा माँगती हूँ


आज की रचनाएँ.....


हे नगाधिराज तू,
भारत की ढाल च।
आसरु च तेरु ही,
तू ही रक्षपाल च।।

गंगा जमुना जी कु मैती,
बद्रीनाथ धाम च।
केदारनाथ  तेरा सिर्वाणा,
तू पर्वतों की शान च।।
नगाधिराजः हिमालय ; पर्वतराज ; नगाधिपति


जोड़-तोड़ और
बेहिसाब रतजगों का मरोड़
रेल की छूटती सीटियों के सुरझरों में
एक नये पौधे की अलसाहट में
झुका-झुका उठता
फूट जाऊंगा।

निदा साहब

ये दिल कुटिया है संतों की यहाँ राजा-भिखारी क्या
वो हर दीदार में ज़रदार है, गोटा-किनारी क्या.

ये काटे से नहीं कटते ये बांटे से नहीं बंटते
नदी के पानियों के सामने आरी-कटारी क्या.

कबीरदास
हमन है इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या ?
रहें आजाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या ?

जो बिछुड़े हैं पियारे से, भटकते दर-ब-दर फिरते,
हमारा यार है हम में हमन को इंतजारी क्या ?



हे वृक्ष
कतिपय
तुम्हारी छाया के अवलंबन में
अभ्रांत सहृदयता के पलों के
सात्विक तत्व से
आश्रय पाकर ही
सूर्य की तेजस्विता से
आलोकित होता है जीवन ...!!


सुबह
मेरी खिड़की की पल्लों पर
ठहरी हैं
कि कब खोलूंगा मैं खिड़की

आज के लिए बस
सादर

2 comments:

  1. बहुत सुंदर सराहनीय तथा पठनीय अंक ।

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  2. धन्यवाद यशोदा जी उत्कृष्ट संयोजन में मेरी रचना को स्थान दिया !!

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