Thursday, September 9, 2021

756..फैला जो तिमिर-जाल कट-कटकर रहा काल



पाई तब चरण-शरण।

फैला जो तिमिर-जाल
कट-कटकर रहा काल,
अँसुओं के अंशुमाल,
पड़े अमित सिताभरण।

जल-कलकल-नाद बढ़ा,
अंतर्हित हर्ष कढ़ा,
विश्व उसी को उमड़ा,
हुए चारु-करण शरण।
-सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला"


आज के लिए बस
कल फिर..

1 comment:

  1. जीवन संदर्भ समझाती बहुत सुंदर रचना, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी को सादर नमन 🙏💐।

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