Saturday, October 31, 2020

525 ...लिखना फिर शुरु कर ‘उलूक’, लम्बाई से भुगतान मिलेगा

सादर अभिवादन
अक्तूबर भी गुज़र गया आज
इसी तरह नवम्बर भी गुजरेगा
खौफ़ में कमी आई है
आईए कुछ नई-जूनी रचनाएँ देखें


लावारिस ज़मीं पे मुखिया जी - -
आए हैं शिलालेख लिखवाने,
ये वही नक़ाबपोश हैं
जिन्होंने कल,
आधी रात
लूटा
है मेरे घर को, सुबह के उजाले में
आए हैं वही लोग हमदर्दी
जताने, मृत सेतु की
तरह झूलते हैं



रात की ठंडक बढी
आसमान में जब  चन्दा चमकता
कभी छोटा कभी बड़ा वह बारबार रूप बदलता
पन्द्रह दिन में पूर्ण चन्द्र होता |





हर धर्म हर पार्टी नारी सुरक्षा की बातें करती है
फिर कथनी करनी में फर्क भला क्यों करती है
इंसानियत,नैतिकता का पाठ क्या तुमने पढ़ा नही
समस्त नारी आज आप सभी से प्रश्न यही करती है।।



आओ ना ! ..
आओ तो ...
रचें दोनों मिलकर
एक मौन रचना 
'खजुराहो' सरीखा ...



लिखना लिखाना
अँधेरे में खुद ही खो लिया है 
स्याही काली
अपने काले शब्दों को पी जा रही है 

शब्दों को पता नहीं
क्यों इतना नशा हो लिया है 
स्याही
कलम के पेट में
अलग से लड़खड़ा रही है
....
बस
सादर


4 comments:

  1. संकलन व प्रस्तुति दोनों सुन्दर - - मुझे शामिल करने के लिए आभार - - नमन सह।

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  2. आभार बकवास को जगह देने के लिये।

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  3. प्रसंशनीय प्रस्तुति ,हमारी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार।

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