सादर अभिवादन
पहिया पंचर हो गया था
बदली करवाए
काम हुआ..
आज की रचनाएँ ....
काम हुआ..
आज की रचनाएँ ....
"क्या आपको अपने लिए डर नहीं लगा ?"
"क्या हमें एक पल भी डरने की अनुमति है?"
प्रसव पीड़ा से जूझती गर्भवती रूबी अपने लिए लेबर रूम में
प्रतिक्षारत रहती है तभी उसे पता चलता है कि
एक और स्त्री प्रसव पीड़ा से परेशान है।
क्योंकि उसकी चिकित्सक जाम में
फँसे होने के कारण पहुँच नहीं पा रही है
तो ऐसी स्थिति में रूबी उस दूसरी स्त्री के पास जाती है और
उसका सफल प्रसव करवाती है।
दूरियाँ दिल में बढ़ी है
रोज बढ़ते फासलों से।
बेवजह लिपटे रहे हम
झूठ के ही आँचलों से।
हम दुनिया से लड़ते हैं पर ख़ुद को नही बदलते
हम प्रेम में होते हैं और हम बदल जाते हैं।
कुछ बदलाव वक़्त के साथ आते हैं
और हमें लगता है लोग बदल जाते हैं।
दुश्मनी है ये मानता हूँ पर
सिलसिला तो बनाए रखिएगा
कुछ मुसाफिर ज़रूर लौटेंगे
एक दीपक जलाए रखिएगा
‘उलूक’ भी
गहरी साँस खींचता सा
कहीं से
अपनी
देखी दिखाई सुनी सुनाई पर
बक बकाई ले कर
फिर से
हाजिर होना
शुरु हो जाता है।
...
बस..
कल की कल
सादर
...
बस..
कल की कल
सादर
सुन्दर संकलन व प्रस्तुति, मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteआभार यशोदा जी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया।
ReplyDeleteसस्नेहाशीष व अशेष शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार छोटी बहना
ReplyDeleteसराहनीय प्रस्तुतीकरण के लिए साधुवाद