नमस्कार
नई गाड़ी आई है
घूमने का शौक है
घूमिए और खूब घुमाइए
चलिए आज हमसे मिलिए..
चलिए आज हमसे मिलिए..
दर्द के बिस्तर पर,
गम की चादर ओढ़कर,
तुम्हारे बेवफ़ाई के तेवर को सुला दिया,
कल चाँदनी रात में,
चाँद का दीदार करके,
तुम्हें हमेशा के लिए भुला दिया।
मानव मन दुर्बल है जानों
कच्ची माटी फिसलन
ढ़ोर हांकते चरवाहे सी
ढुलमुल डांडी डगमग
सदा प्रीत को मन संजोना
गुणवत्ता जावन की।।
माता जी सब कष्ट हरो ,
हम तो है परदेश
तुम इतनी क्यो श्याम रही,
गहरे काले केश
हर कम्पन उसकी रहमत है
फिर-फिर पूर्ण की चले तलाश,
जाने खुद को पूर्ण पुष्प सा
हर सिंगार या रूद्र पलाश !
चलते-चलते एक प्रस्तुति
घुमक्कड़ के ब्लॉग से
चलते-चलते एक प्रस्तुति
घुमक्कड़ के ब्लॉग से
मायके आयी रमा, माँ को हैरानी से देख रही थी। माँ बड़े ध्यान से
आज के अखबार के मुख पृष्ठ के पास दिन का खाना सजा रही थी।
दाल, रोटी, सब्जी और रायता। फिर झट से फोटो खींच व्हाट्सप्प
करने लगीं।
...
अब बस
सादर
...
अब बस
सादर
बेहतरीन..
ReplyDeleteआभार..
सादर..
वाह !! पठनीय रचनाओं का संयोजन, आभार !
ReplyDeleteवाह! शानदार। मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteबेहतरीन रचनाएँ