सादर नमस्ते
त्रिकोणीय संघर्ष के आसार
एक प्रश्न चिन्ह है..शायद
आजके अंक में हम
आए हैं अपना पिटारा लेकर...
माने या न माने.....चार स्थान ऐसे हैं जो कभी नही भरते
समुद्र, मन, तृष्णा, और श्मशान
श्मशान....
जीवन का सत्य यहीं से दिखता
अग्नि की लपटों का घिरा रहता
कभी न बुझती आग तुम्हारी.....
किसने तुझको है ये श्राप दिया।।
उफ !
बहुत बुरा है,
दो पैरों का जानवर
अपनी मादा के साथ |
शुक्र है मैं मुक्त हूँ
उन्मुक्त हूँ
जीवन रहा नही
मरण वार दिया
तन तारिणी
वन्ही (अग्नि) सागर
पल में पार किया ...
माँ की वो पुरानी साड़ियाँ
वो भी गिनी-चुनी
कुछ नयी, तह कर भी रखी थी
पर मान-सम्मान के लिए
आने-जाने के लिए
मुझे इक आईना ऐसा दिखा दे.
हकीकत जो मेरी मुझको बता दे.
नदी हूँ हद में रहना सीख लूंगी,
जुदा सागर से तू मुझको करा दे.
तुम्हें ये जो पूर्णता का बोध
हर्षाए जा रहा है
ये अनभिज्ञता है तुम्हारी
थकान नीरसता छिछलापन है
तुम्हारे मन-मस्तिष्क का
उत्सुकता उत्साह पर
अनचाहा विराम चिन्ह है
हर चेहरे के ख़ुशी
और दुःख
में डूब कर, जीवन चाहे वो शाश्वत - -
सत्य का प्रकाश, जो दे जाए
चिरस्थायी दीप्ति,
अंतर तमस
खींचकर मारो मेरी ओर,
हलचल मचा दो मुझमें,
चोट लगे तो लग जाय ,
पर महसूस तो हो मुझे
कि मैं अभी ज़िन्दा हूँ.
आभार..
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति..
सादर..
बहुत सुन्दर प्रस्तुति हमारी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति व अनुपम रचनाएँ, मुझे शामिल करने हेतु हार्दिक आभार - - नमन सह ।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति. मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार
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