Friday, October 9, 2020

503 ..अकेला, खोजता रहा अपनी गुमशुदा छाया

सादर अभिवादन
आज हम हैं
अक्टूबर के नवें दिन
कल कुछ तो था
रोज ही कुछ न कुछ होते ही रहता है
और होते ही रहेगा...घर पर हैं
खुराफात तो होगी ही 

चलिए रचनाएँ देखें..
शुरुआत प्रार्थना से..

प्रार्थना ....

जो दिया है तूने हे प्रभु !
असीम है 
नहीं समाता इस झोली में 
तू दिए ही जाता है 
तेरी अनुकम्पा की क्या कोई सीमा है ?


ढलता सूरज का संदेशा, जानो मेरे भाई।
करता है जो काम गलत तो,  शामत उसकी आई।।

कड़ी मेहनत दिनभर करके, बिस्तर पर अब जाओ।
होगा नया सवेरा फिर से,  गीत खुशी के गाओ ।।


फूल-फूल इतराती फिरती
मेरी ही बगिया में आकर
मेरे ही हाथों में ना आती
बहुत प्यार करता हूँ इससे
इसने प्यार की कद्र ना जानी

बादलों की ओट में ओझल होते हुए चाँद ने l 
फ़साना नया बुन दिया पलकों में बोझिल रातों ने ll

रुखसत हो गयी रवायतें मीठी मीठी नींदों की l
पलकें मुकम्मल हो गयी रात सितारों की ll


अकेला, खोजता रहा अपनी गुमशुदा - -
छाया, अंधकार में तमाम चेहरे
क्रमशः  विलीन हो गए,
आकाश में उभर
चले तारक -
पुंज, फिर
सजेगी
.....
आज बस
कल की कल
सादर




3 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति एवं संकलन - - मुझे शामिल करने हेतु हार्दिक आभार - - असंख्य धन्यवाद - - नमन सह।

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  2. सुन्दर-सुन्दर लिंक्स का चयन पढ़ना अच्छा लगा

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  3. बहुत उम्दा कलेक्शन यशोदा जी ...वाह

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