नमस्कार
आज हम..
क्यों और कैसे
ये बाद की बात है
चलिए रचनाएँ कैसी लगी बताइएगा
चलिए रचनाएँ कैसी लगी बताइएगा
अगर एक बार लड़ाई
शुरू हो जाय,
तो उसे बढ़ाते ही रहते हो,
खुद में छिपाए, प्राण कितने!
पिरोए, जीवन के, अवधान कितने,
जीवन्त रखते, अरमान कितने!
जरा सा, थम सी जाती है,
जिद्दी जमीं!
तस्वीर क्या बोलेगी
वह तो मौन है
पर उसके नयना बोलते हैं
मन के भेद खोलते हैं |
उसकी अलकें चहरे पर
हवा से उड़ने लगती हैं
अनमोल हैं यादें
कुछ अल्फ़ाजों में बयां कर पाती हूँ सुकूं
कुछ क़ागजों पर लिख कर पाती हूँ सुकूं
कुछ परछाईयां रखी बसा दिल,आँखों में
कुछ धड़कन,सांसों में छुपा पाती हूँ सुकूं ।
ही सुरसरि है जहाँ से गुज़रता है सारा
संसार, ये वही मिट्टी है जिसके सीने
में दबी हुई है मानवता के सहस्त्र
अंकुरण, ये वही जीवनदायी
उंगलियां हैं जिन्हें थाम
के हम सीखते हैं
संस्कार का
अनुकरण,
लेकिन अफ़सोस है कि हम ही उसका
करते हैं जीवित दहन - -
संसार, ये वही मिट्टी है जिसके सीने
में दबी हुई है मानवता के सहस्त्र
अंकुरण, ये वही जीवनदायी
उंगलियां हैं जिन्हें थाम
के हम सीखते हैं
संस्कार का
अनुकरण,
लेकिन अफ़सोस है कि हम ही उसका
करते हैं जीवित दहन - -
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और चलते-चलते सुनिये
अभिताभ बच्चन के स्वर में
एक प्यारा गीत
बेहतरीन..
ReplyDeleteआभार..
सुन्दर संकलन. मेरी कविता शामिल की. आभार.
ReplyDeleteसुन्दर संकलन व प्रस्तुति, हार्दिक आभार नमन सह ।
ReplyDeleteबेहतरीन रचनाएँ
ReplyDeleteउम्दा रचनाएं | आभार सहित धन्यवाद मेरी रचना शामिल करने के लिए दिग्विजय जी |
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