सादर नमस्कार
हमे खेद है कि
परसों हम प्रस्तुति अधूरा छोड़ गए थे
आभार छुटकी को
आइए आज का पिटारा खोलें ...
आइए आज का पिटारा खोलें ...
नब्ज़ ठहरी सुनती न उसकी बात
हाय ! मानव की यह कैसी जात
मन सुबक-सुबककर रोया
आँख का पानी आँख में सोया।
क्या तुमने किसी से प्यार किया है
किया है तो कब और कहाँ ?
सोच विचार कर बताना
वह कैसा प्यार था भक्ति प्रेम या आकर्षण |
जिंदगी रुक सी गई है
कदम जम से गए हैं
एक वायरस के आने से
कुछ पल थम से गए हैं
कहीं कब्र नसीब नहीं होती
कोई रातोरात जलाया जाता है
इंसानियत शर्मसार होती है
उसे एक खबर बनाया जाता है
एक सिरे से बुनो ख़्वाब, तो दूसरा
सिरा अपने आप उधड़ जाए,
ज़िन्दगी का ताना-बाना
किसी पहेली से कम
नहीं, अभी अभी
जो है मेरे
हथेली
के बीच एक छोटी सी बूंद, पलक
झपकते कहीं वाष्प बन कर
न उड़ जाए।
इक धूप सी जमी है
निगाहों के आस-पास
गर ये आप हैं तो
आपके कुर्बान जाइये
..
बस
सादर
..
बस
सादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबेहतरीन..
ReplyDeleteआभार..
सादर..
Sundar prastuti aur blog ka praroop bhi bada sundar
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसुंदर रचनाओं के साथ मंत्रमुग्ध करती प्रस्तुति, मेरी रचना को शामिल करने हेतु आभार - - नमन सह ।
ReplyDeleteसराहनीय प्रस्तुतीकरण
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति।मुझे स्थान देने हेतु सादर आभार आदरणीय सर।
ReplyDeleteसादर
Thanks for the my post
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