Sunday, October 18, 2020

512...वह तो निश्छल है परोपकारी है गति का दूसरा रूप है

सादर अभिवादन..
मातारानी कृपा करें 
रचनाएँ पहले देखें...

हे देवि!...  हमें क्षमा करें ...अब छोड़ो भी


वेदों से लेकर उपनिषदों तक, 
शास्त्रों - पुराणों से लेकर सभी सनातनी ग्रंथों तक 
किसी पूजा से पहले स्वच्छता को प्रथम स्थान द‍िया गया है 
क्योंकि यह शारीरिक शुद्धता के माध्यम से 
मानसिक बल व निरोगी रहने की 
मूलभूत आवश्यकता होती है। 
कोई भी पूजा मन, वचन और कर्म की शुद्धि व 
स्‍वच्‍छता के बिना पूरी नहीं होती। 



आँधी और शीतल बयार, 
आपस में मिले इक रोज।
टोकी आँधी बयार को 
बोली अपना अस्तित्व तो खोज।


भाई रे! सोंच -समझ कर चल।
थोड़ा सम्हल-सम्हल कर चल।

यह मत सोंचो आकाश चढ़ूँ।
यह मत सोंचो पाताल गिरूँ।
अपनी धरती पर ही तू चल।



परिवर्तन के पड़ाव पर जूझती सांसें 
सेवा में समर्पित सैनिक बन सँवरतीं हैं  
समाज के अनुकूल स्वयं को डालना पढ़ती हूँ।



नदियाँ सागर की गोद में 
समा जाने के लिए 
अवतरित नहीं होती   
वह तो निश्छल है 
परोपकारी है
गति का दूसरा रूप है 
समर्पण का दूसरा नाम।
....
आज बस
कल फिर
सब छुट्टी पर जाने वाले हैं
सादर




7 comments:

  1. नमस्कार यशोदा जी, मेरी ब्लॉगपोस्ट को अपने इस संकलन में शाम‍िल करने के ल‍िए आभार

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  2. बेहतरीन प्रस्तुति..
    सादर..

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  3. सुंदर संकलन


    मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार

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  4. उम्दा प्रस्तुति।मेरी रचना को इस अंक में साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद एवं आभार।

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  5. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति।मेरी रचना को स्थान देने हेतु दिल से आभार दी।

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  6. बहुत सुन्दर सराहनीय प्रस्तुति। मेरी रचना को सथान देने हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार।

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  7. व्वाहहहहहह
    सादर..

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