नमस्कार
गूगल ने परेशान नहीं किया
सीखने का अवसर दिया
ताकि हम कॉपी पेस्ट से बचें
सीधे पेज पर टाईप करें
आज के पिटारे में ....
शिव से ...
शिव,
तुम अनाचार देख रहे हो न,
कौन किसके गले में
सांप डाल रहा है,
ख़ुद अमृत पीकर
दूसरों को विषपान करा रहा है,
ज़िम्मेदारियों से मुक्त होकर
कर्तव्य की गंगा का बोझ
कौन दूसरों के सिर डाल रहा है.
मस्तिष्क .....
हर हाल में मस्तिष्क सक्रिय रहता है
सुख़ से हो या दुखी कभी निष्क्रिय नहीं होता
कोई बात उसे चिंतित नहीं करती
हर समय व्यस्त रहता है अपने कार्य में |
प्राचीनता का बोध ...
प्रगति उसके साथ रही ,जहाँ चिंतन और शोध
खंडहर में अवशेष मिले ,प्राचीनता का बोध
निर्मल दृष्टि कहां मिली, कहा है निश्छल प्रेम
अपनापन है जहाँ मिला ,वही मिला सुख चैन
मन और वह ....
मन हिरण सा दौड़ता है
धरती से आकाश तक
अनभिज्ञ.... कि कोई है ज्योति शिखा सा
भीतर जलता है, अकंप
जो उसमें प्राण फूँकता है
मन बादलों की तरह डोलता है
करती हैं मदहोश तुम्हारी प्यारी बातें ....
वो चौबारे पे खड़े होकर तकना तेरा।
और आँखों से ही कहना सारी बातें।।
कैसे भूल जाऊं मैं साथ बिताये पल।
पल दो पल में हो जाती थी सारी बातें।।
....
आज बस
कल फिर
सादर
बढ़िया..
ReplyDeleteसादर..
सुन्दर संकलन. मेरी कविता शामिल की. शुक्रिया.
ReplyDeleteसीखना हर हाल में अच्छा है, सुंदर प्रस्तुति, आभार !
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