Saturday, May 30, 2020

370..भगवान शिव अपनी तीसरी आँख की कनखियों से निहार रहे हैं

भगवान शिव अपनी तीसरी
आँख की कनखियों से
निहार रहे हैं समूचे विश्व को
पूरी आँख नहीं  
खोल पा रहे
कारण..
मीटिंग नहीं कर पाए त्रिदेव पहले..
यदि कर लेते तो ..
किसी एक व्यक्ति को चुनकर
एक नाव में बिठा लेते
शायद उपयुक्त व्यक्ति नहीं मिला
शेषशय्या धारी को
सोचने में क्या जाता है
चलिए चलें...

भयभीत,व्यग्र आँखें
बेबसी से देख रही हैं
शिवालिक की श्रृंखलाओं
को पार कर आई
मीलों आच्छादित
भूरे-काले उड़ते,
निर्मम बादलों से
बरसती विपदा,

मोड़ दी हमने ....पम्मी सिंह

2122 2122 212
मोड़ दी हमने मोहब्बत की सदा
अब पत्थरों से सखावत भूल गये,

आँख है भरी,बेकसों सी हैं अदा
बेदिली की अब इबादत भूल गये,




अल्लाह ने हुस्न की नियामत दी है तुम्हें
हर किसी को यह  भी नसीब नहीं होती


जिन डालियों पर
सजा करते थे झूले ,
कलरव था पंछियों का
वहाँ अब सन्नाटा है ,
झूल रहे हैं फंदे निर्लिप्त
कहलाते जो अन्न दाता
भूमि पुत्र भूमि को छोड़
शून्य के संग कर रहे समागम।


हवाओं सा जब से वो छू कर गया है 
मेरी रूह तक को वो महका गया है 

सजाया है किसने "अयान" मेरे घर को 
मेरे अंगना ये कौन आ गया है 


सो जाऊँ कैसे, मैं, करवटें लेकर! 
पराई पीड़ सोई, एक करवट, 
दूजे करवट, पीड़ पर्वत, 
व्यथा के अथाह सागर, दोनो तरफ, 
विलग हो पाऊँ कैसे! 
सो जाऊँ कैसे? 
सत्य से परे, मुँह फेर कर! 


किनारा कर लिया तुमने, 
तो जाओ छोड़ देते हैं
न हमको याद अब करना, 
तेरा दर छोड़ देते हैं।
..
अब बस
सादर

4 comments:

  1. सुंदर रचनाओं का सांध्य संकलन..
    इन बेहतरीन रचनाओं के बीच अपनी रचना को देख बहुत खुशी हुई।
    आभार.

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  2. बहुत दिनों बाद पुनः इस मंच का हिस्सा बनकर अच्छा लगा। समस्त रचनाकारों को नमन व शुभकामनाएँ ।

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  3. धन्यवाद मेरी रचना को आज शामिल करने के लिए |उम्दा संकलन आज का |

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  4. बहुत बहुत बढियां प्रस्तुति

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