सादर नमस्कार
जीवन का उद्देश्य
उसी चेतना को जानना है
जो जन्म और मरण के
बन्धन से मुक्त है।....और
उसे ही जानना ही मोक्ष है।
अब चलिए रचनाओं की ओरयय
प्रदर्शी का जन सैलाब उमड़ता देखकर और
बिक्री से उफनती तिजोरी से
आयोजनकर्ता बेहद खुश थे।
जब बेहद आनन्दित क्षण
सम्भाला नहीं गया तो
उन्होंने अपने मातहतों से कहा,-
"इस साल तुम्हारा बोनस दोगुना होगा।"
हुई मानवता शर्मसार
रोज देखकर अखवार
बस एक ही सार हर बार
मनुज के मूल्यों का हो रहा हनन
ह्रास उनका परिलक्षित
होता हर बात में
आसपास क्या हो रहा
वह नहीं जानता
मां
अगर ऐसा करूंगी तो फिर किस
स्वाभिमान से
अपने बच्चों को
बुरे भले की पहचान करवाऊंगी
किस मुंह से उन्हें
यातना और अन्याय के आगे
न झुकने का पाठ पढ़ाऊंगी
नवकिसलय अब तमस कोण से
अँगड़ाई जब जब लेगा
अमराई के आलिंगन में
नवजीवन तब खेलेगा।
लहरे छाप के रूप में ......
शंख ,सीपियों को छोड़ जाती हैं।
मछली पानी में अपनी गन्ध छोड़ देती है
पर एक इंसान ही ऐसा जीव ......है
वक्त किसी के लिए
ठहरता नही
मगर तुम्हें उम्मीद है
कि वो ठहरेगा
सिर्फ और सिर्फ
तुम्हारे लिए
और इंतजार करेगा
...
किस के रोके रूका है सवेरा
रात भर का है मेहमान अंधेरा
अब बस
सादर
सस्नेहाशीष व शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका छोटी बहना
ReplyDeleteसामयिक सार्थक चिंतन वाली उम्दा लिंक्स चयन
साधुवाद
बेहतरीन प्रस्तुति ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका धन्यवाद ,सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई हो।उम्दा शुभ प्रभात
ReplyDeleteआभार सहित धन्यवाद यशोदा जी मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए |
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह..सुंदर रचनाओं से संकलित।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति,मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार।
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