सादर अभिनन्दन
शेर-ए-कश्मीर इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल साइंस से
अंतिम परीक्षा देकर शुचिता घर वापिस आई
तो फिर उसे पहाड़ी शहर में साल भर के
बाद ही चिकित्सा सेवा देकर ही आ पाई।
-विभा दीदी की प्रस्तुति से ..
अब नियमित रचनाएँ....
टूट रहा परिवार है .....श्रीराम रॉय
अब खाट बाहर की चटाई ,थक कर टूटा पैर है
भाई -भाई दूर की बातें , माँ -बाप से ही बैर है
अब न कोई किलकारी ,न पायल की झंकार है।
खुद की खातिर जीते हैं ,टूट रहा परिवार है।
गौरैया ...दिनेशराय द्विवेदी
तभी एसी के ऊपर से चीं..चीं की आवाजें आईं। यह बड़े अचरज की बात थी। मैंने ऊपर देखा और आवाज पर गौर किया तो समझ गया कि वे गोरैया के बच्चों की आवाजें हैं। असल में एसी के ऊपर एक थर्माकोल चिपका हुआ गत्ता रखा था, जिससे पक्षी ए.सी. में तिनके न गिराएं।
ऊट-पटांग ...सुबोध सिन्हा
हे कवि !
निकलो अपने ही शहर में,
कम से कम अपने मुहल्लों में
भर दो पेट एक भी मजबूर परिवार का
जो तुम्हारी हजार सकारात्मक
या नकारात्मक लेखनी से
लाख गुणा बेहतर है ..
मैं भी काफ़िर, तू भी क़ाफ़िर ....सलमान हैदर
फ्रायड पढ़ाने वाले काफ़िर
मार्क्स के सबसे मतवाले काफ़िर
मेले-ठेले कुफ़्र का धंधा
गाने-बाजे सारे फंदा
मंदिर में तो बुत होता है
मस्जिद का भी हाल बुरा है
कुछ मस्जिद के बाहर काफ़िर
कुछ मस्जिद में अंदर काफ़िर
मुस्लिम देश में अक्सर काफ़िर
चुटकी भर सिंदूर ....उर्मिला सिंह
कुछ यादें ऐसी होती हैं जो पीछा नही छोड़तीं ...
यादों की अमराई में वक्त बे वक्त दस्तक दे ही देती हैं......!
ऐसी ही आज की शाम है.....
बच्चे कहीं गये हुए हैं
पतिदेव दोस्तों के साथ बैठे हैं
और मैं ख्यालों में जाने कहाँ घूम रही थी....!
शेर-ए-कश्मीर इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल साइंस से
अंतिम परीक्षा देकर शुचिता घर वापिस आई
तो फिर उसे पहाड़ी शहर में साल भर के
बाद ही चिकित्सा सेवा देकर ही आ पाई।
-विभा दीदी की प्रस्तुति से ..
अब नियमित रचनाएँ....
टूट रहा परिवार है .....श्रीराम रॉय
अब खाट बाहर की चटाई ,थक कर टूटा पैर है
भाई -भाई दूर की बातें , माँ -बाप से ही बैर है
अब न कोई किलकारी ,न पायल की झंकार है।
खुद की खातिर जीते हैं ,टूट रहा परिवार है।
गौरैया ...दिनेशराय द्विवेदी
तभी एसी के ऊपर से चीं..चीं की आवाजें आईं। यह बड़े अचरज की बात थी। मैंने ऊपर देखा और आवाज पर गौर किया तो समझ गया कि वे गोरैया के बच्चों की आवाजें हैं। असल में एसी के ऊपर एक थर्माकोल चिपका हुआ गत्ता रखा था, जिससे पक्षी ए.सी. में तिनके न गिराएं।
ऊट-पटांग ...सुबोध सिन्हा
हे कवि !
निकलो अपने ही शहर में,
कम से कम अपने मुहल्लों में
भर दो पेट एक भी मजबूर परिवार का
जो तुम्हारी हजार सकारात्मक
या नकारात्मक लेखनी से
लाख गुणा बेहतर है ..
मैं भी काफ़िर, तू भी क़ाफ़िर ....सलमान हैदर
फ्रायड पढ़ाने वाले काफ़िर
मार्क्स के सबसे मतवाले काफ़िर
मेले-ठेले कुफ़्र का धंधा
गाने-बाजे सारे फंदा
मंदिर में तो बुत होता है
मस्जिद का भी हाल बुरा है
कुछ मस्जिद के बाहर काफ़िर
कुछ मस्जिद में अंदर काफ़िर
मुस्लिम देश में अक्सर काफ़िर
चुटकी भर सिंदूर ....उर्मिला सिंह
कुछ यादें ऐसी होती हैं जो पीछा नही छोड़तीं ...
यादों की अमराई में वक्त बे वक्त दस्तक दे ही देती हैं......!
ऐसी ही आज की शाम है.....
बच्चे कहीं गये हुए हैं
पतिदेव दोस्तों के साथ बैठे हैं
और मैं ख्यालों में जाने कहाँ घूम रही थी....!
बेहतरीन...
ReplyDeleteसादर..
सुंदर प्रस्तुति के साथ सार्थक रचनाएँ | सादर
ReplyDeleteसस्नेहाशीष व असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार छोटी बहना..
ReplyDeleteसराहनीय प्रस्तुतीकरण
बेहतरीन सुंदर प्रस्तुति !
ReplyDeleteइस कठिन समय में सभी सुरक्षित व स्वस्थ रहें
बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति chhayabad
ReplyDelete