सादर अभिवादन
शुभ समाचार
छत्तीसगढ़ शासन ने
लॉकडाऊन में तनिक दी ढील
अपने कर्मचारियों को
ऑफिस आने को कहा..
कल शुक्रवार से सभी कर्मचारी
जाएँगे ऑफिस...
अस्तु...
अब आज की रचनाएँ...
पहली रचना एक बंद ब्लॉग से
ओ वराभय! ...मधुरेश
बाहर का कौतूहल सारा,
बस प्रयास निष्फल-निस्सारा।
फिर भी मूढ़ा दौड़ रहा है,
व्यर्थ की कौड़ी जोड़ रहा है!
दो क्षण भीतर झाँक है लेता,
औ' स्व को है सांत्वना देता,
'मैं हूँ!', हाँ, मैं सचमुच में हूँ!
थोड़ा सा हूँ, पर तुझमें 'हूँ'!
व्याकुल हिरन के प्रान ...जयकृष्ण राय तुषार
छटपटाते
प्यास से
व्याकुल हिरन के प्रान |
और नदियों
के किनारे
शब्द भेदी बान |
द्रौपदी ...डॉ. उषा किरण
और तुम द्रौपदी ?
गृह-प्रवेश पर ही
बाँट दी गईं
किसी ने भी कहा
बाँट लो
और तुम पाँच पतियों में
सिर झुकाए,चुपचाप
बँटने को तैयार हो कैसे गईं?
लॉकडाउन में ..ओंकार जी
लताएँ कसकर लिपट गई हैं
ऊंचे-ऊंचे पेड़ों के सीने से,
बादल घूम रहे हैं आकाश में
इधर से उधर मस्ती में.
शाम को खिड़की पर खड़े होंगे,
डूबता हुआ सूरज देखेंगे,
महसूस करेंगे कि उगते सूरज से
डूबता सूरज कितना अलग होता है.
गुलजार ..रिंकी राउत
बे वजह घर से निकलने की ज़रूरत क्या है"
मौत से आँखे मिलाने की ज़रूरत क्या है"
सब को मालूम है बाहर की हवा है क़ातिल"
यूँही क़ातिल से उलझने की ज़रूरत क्या है"
आज बस
कल फिर
सादर
शुभ समाचार
छत्तीसगढ़ शासन ने
लॉकडाऊन में तनिक दी ढील
अपने कर्मचारियों को
ऑफिस आने को कहा..
कल शुक्रवार से सभी कर्मचारी
जाएँगे ऑफिस...
अस्तु...
अब आज की रचनाएँ...
पहली रचना एक बंद ब्लॉग से
ओ वराभय! ...मधुरेश
बाहर का कौतूहल सारा,
बस प्रयास निष्फल-निस्सारा।
फिर भी मूढ़ा दौड़ रहा है,
व्यर्थ की कौड़ी जोड़ रहा है!
दो क्षण भीतर झाँक है लेता,
औ' स्व को है सांत्वना देता,
'मैं हूँ!', हाँ, मैं सचमुच में हूँ!
थोड़ा सा हूँ, पर तुझमें 'हूँ'!
व्याकुल हिरन के प्रान ...जयकृष्ण राय तुषार
छटपटाते
प्यास से
व्याकुल हिरन के प्रान |
और नदियों
के किनारे
शब्द भेदी बान |
द्रौपदी ...डॉ. उषा किरण
और तुम द्रौपदी ?
गृह-प्रवेश पर ही
बाँट दी गईं
किसी ने भी कहा
बाँट लो
और तुम पाँच पतियों में
सिर झुकाए,चुपचाप
बँटने को तैयार हो कैसे गईं?
लॉकडाउन में ..ओंकार जी
लताएँ कसकर लिपट गई हैं
ऊंचे-ऊंचे पेड़ों के सीने से,
बादल घूम रहे हैं आकाश में
इधर से उधर मस्ती में.
शाम को खिड़की पर खड़े होंगे,
डूबता हुआ सूरज देखेंगे,
महसूस करेंगे कि उगते सूरज से
डूबता सूरज कितना अलग होता है.
गुलजार ..रिंकी राउत
बे वजह घर से निकलने की ज़रूरत क्या है"
मौत से आँखे मिलाने की ज़रूरत क्या है"
सब को मालूम है बाहर की हवा है क़ातिल"
यूँही क़ातिल से उलझने की ज़रूरत क्या है"
आज बस
कल फिर
सादर
आफिस तो हमारा गुरुवार को ही चालू हो गया..
ReplyDeleteपर 3.00 बजे बंद भी हो गया..
शनि-रवि की छुट्टी मिली है...
सही-सही गुजरे तीन दिन..
सादर..
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति,
ReplyDeleteसुन्दर संकलन. मेरी कविता शामिल करने के लिए शुक्रिया.
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार |अच्छे लिंक्स |आपको बहुत बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनायें |
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