कल जो लिखे
सो लिखे..
आज....
कुछ मुबारबाद
फेसबुक से
देखा है आसमान पे जब से हिलाले-ईद।
दुनिया ख़ुशी से झूम रही है मना ले ईद।
-कुँवर कुसुमेश
.....
तिरी दीद जिस को नसीब है
वो नसीब क़ाबिल-ए-दीद है
तुझे सोचना मेरी चाँद रात
तुझे देखना मेरी ईद है
-तुषार रस्तोगी
....
अब चलें पिटारा खोलें....
ईद मुबारक ..उम्मीद तो हरी है
सुबह से
इंतजार है
तुम्हारे मोंगरे जैसे
खिले चेहरे को
करीब से देखूं
ईद मुबारक
कह दूं
मुक्तक ...काव्य कूची
न हमको सांझ की चिंता,न हमको रात का डर है,
मिले जो तुम मुझे मित्रों, न हमको घात का डर है,
पलों को जी लिया करते,ठहर जाये यहीं जीवन,
रहे बैचैन क्यों अब हम ,मुझे किस बात का डर है।
अनछुआ मन ....मेरी धरोहर
पानी की तलाश में
सूखी रेत पर रगड़ाता
अनछुआ मन
मरीचिका के भ्रम में
तड़पता रहता है
परविहीन पाखी-सा
आजीवन।
समय की रेत फ़िसलती हुई, ...मेरी जुबानी
समय की रेत फ़िसलती हुई,
उम्र मेरी ये ढलती हुई,
करती है प्रश्न खड़े कई।
क्या वक्त है कि मुड़के पीछे देखें,
क्या वक्त है कि कुछ नया सीखें।
सीखा जो भी अब तलक,
कर उसको ही और बेहतर भई।
समय की रेत...
विधु का सागर स्नान ....मन की वीणा
रजनीपति किलोल करते
पारावार अवगाहना
झाग मंडित नीर सारा
उबटन रजत कर नाहना
बैठ कौमुदी झूले पर
रात बीती जा रही है।।
...
बस..
कल का अंक
वर्षांत अंक होगा
सादर
सो लिखे..
आज....
कुछ मुबारबाद
फेसबुक से
देखा है आसमान पे जब से हिलाले-ईद।
दुनिया ख़ुशी से झूम रही है मना ले ईद।
-कुँवर कुसुमेश
.....
तिरी दीद जिस को नसीब है
वो नसीब क़ाबिल-ए-दीद है
तुझे सोचना मेरी चाँद रात
तुझे देखना मेरी ईद है
-तुषार रस्तोगी
....
अब चलें पिटारा खोलें....
ईद मुबारक ..उम्मीद तो हरी है
सुबह से
इंतजार है
तुम्हारे मोंगरे जैसे
खिले चेहरे को
करीब से देखूं
ईद मुबारक
कह दूं
मुक्तक ...काव्य कूची
न हमको सांझ की चिंता,न हमको रात का डर है,
मिले जो तुम मुझे मित्रों, न हमको घात का डर है,
पलों को जी लिया करते,ठहर जाये यहीं जीवन,
रहे बैचैन क्यों अब हम ,मुझे किस बात का डर है।
अनछुआ मन ....मेरी धरोहर
पानी की तलाश में
सूखी रेत पर रगड़ाता
अनछुआ मन
मरीचिका के भ्रम में
तड़पता रहता है
परविहीन पाखी-सा
आजीवन।
समय की रेत फ़िसलती हुई, ...मेरी जुबानी
समय की रेत फ़िसलती हुई,
उम्र मेरी ये ढलती हुई,
करती है प्रश्न खड़े कई।
क्या वक्त है कि मुड़के पीछे देखें,
क्या वक्त है कि कुछ नया सीखें।
सीखा जो भी अब तलक,
कर उसको ही और बेहतर भई।
समय की रेत...
विधु का सागर स्नान ....मन की वीणा
रजनीपति किलोल करते
पारावार अवगाहना
झाग मंडित नीर सारा
उबटन रजत कर नाहना
बैठ कौमुदी झूले पर
रात बीती जा रही है।।
...
बस..
कल का अंक
वर्षांत अंक होगा
सादर
शुभ संध्या
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति,ईद मुबारक
बेहतरीन संकलन
ReplyDeleteबहुत सुंदर संकलन. मेरी रचना को शामिल करने के लिए तहदिल दिल आभार। सादर नमन
ReplyDeleteसभी सुरक्षित व स्वस्थ रहें
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteसभी रचनाएं बहुत सुंदर।
सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को मुखरित मौन में शामिल करने केलिए हृदय तल से आभार।
बहुत सुंदर सूत्र संयोजन
ReplyDeleteमुझे सम्मिलित करने का आभार
सादर