कोशिश यही है कि
कोरोना हमारे पेज में
न फैले इसीलिए..
हम इस पेज में कोरोना रहित
रचनाएं चुनी गई...
कोशिश जारी हो गई है....
कोरोना हमारे पेज में
न फैले इसीलिए..
हम इस पेज में कोरोना रहित
रचनाएं चुनी गई...
कोशिश जारी हो गई है....
सादर नमस्कार..
मतलब की साथी है दुनिया
कई कोस पर अपना घर है ,
घोड़ा -गाड़ी ,दाना -पानी
नहीं साथ में ,कठिन सफ़र है ,
भटकाते ये मील के पत्थर
नहीं दे रहे बढ़ने बाबू !
छाँव घने पेड़ की
बातों बातों में खींच रही है
ले जा रही है बारम्बार मुझे
उस वृक्ष के नीचे जहां
फूलों की वर्षा हो रही है
पेड़ की टहनियों से
कुछ ही दिनों में
कितना सब कुछ बदल गया
तुम बदल गए
मैं बदल गई
तेरे मेरे रिश्ते की
परिभाषा ही बदल गई
तुम अपने प्रेम से
मुझे मुक्त होने को
कहते हो?
तो कह दो उस
आसमाँ से कि
अपनी बारिश की
बूँदों को धरती से
वापस ले जाए।
वो जहाँ भी रहे
खुश रहे
क्योंकि
जबतक मैं उसके प्यार मे था
अंधेरे में भी उजाला नजर आता था
...
आज बस
शायद कल फिर
सादर
...
आज बस
शायद कल फिर
सादर
वो जहाँ भी रहे
ReplyDeleteखुश रहे ...
अच्छी रचनाएँ..
सादर..
हार्दिक आभार आपका |सभी लिंक्स अच्छे |
ReplyDeleteकुछ बदला हुआ सा पढ़ना अच्छा लगा ।सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसादर ।
सुंदर रचना प्रस्तुति
ReplyDeleteकोरोना रहित प्रस्तुति अच्छी रही !
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