सादर नमस्कार
मई जा रही है
आभार मई..
गनीमत आप
मात्र तीस दिन की हो
दिन अगर इकतीस होते....तो
और बोझिल लगता..
तुम्हारा गुज़रना
चलिए आज के पिटारे की ओर..
उठते तूफ़ान की नहीं कोई ख़बर...
एक माँ चीख़ी...
बच्चे की थी करुण पुकार
जग ने कहा -
माँ-बेटे की पीड़ा का विलाप! नहीं नियति पर ज़ोर।
पूछ-पूछ पता घरों का, देगा दस्तक यह तूफ़ान
बाक़ी मग्न झूमो जीवन में सुख का थामे छोर।
बेगाने
बाग़ के मालिक ने ढेला उठा कर वृक्ष की टहनियों पर दे मारा। चह-चह करते पंछी उड़ चले।
फुटपाथ पर बैठा नजफ़ भावशून्य आँखों से आसमान में उन्हें दूर तक जाते हुए देखता रहा।
“कहाँ गए होंगे? अपने-अपने बसेरों पर शायद?” नजफ़ की होठों की सूखी पपड़ाई पत्तियाँ थरथरा उठीं।
नर में नारायण ....
ये सच है कि कोई भी नेकी की राह आसान नहीं होती ।बहुत रुकावटें आती हैं । जब आप शुभ संकल्प लेते हैं तो कुछ लोग नकारात्मकता भी फैलाते हैं ऐसे वक्त पर ...लेकिन यदि आप उजले मन से नेकी के रास्ते पर आगे बढ़ते हैं तो राहें खुद आसान हो जाती हैं । कभी कहीं पढी पंक्तियाँ कुछ-कुछ याद आ रही हैं...
"साफ है मन यदि
राह है सच्चाई की
तो प्रार्थना के बिना भी
प्रसन्न होंगे देवता....!!”
चन्द अपनो की तलाश होती है ...
जिन्हें भीड़ नहीं
चन्द अपनो की
तलाश होती है
जो किसी भी कार्य के
अंत का सोच कर
आरम्भ करने से
पीछे नहीं हटतीं
क्या छुप पाओगे तुम ...
छुप जाओ, हर किसी से तुम पर क्या...
स्वयं से छुप पाओगे तुम
वो गलतियाँ , जो की थी
तुमने जानबूझकर ...
रह -रहकर अँधेरे कोणों से
अट्टहास करती जब तुम्हारे समक्ष आयेंगी...
तुम्हारे हृदय को कचोटती
काले साये की तरह तुम्हें डराएंगी
कहो भाग कर तब कहाँ जाओगे तुम
...
आज बस
कल फिर
सादर
मई जा रही है
आभार मई..
गनीमत आप
मात्र तीस दिन की हो
दिन अगर इकतीस होते....तो
और बोझिल लगता..
तुम्हारा गुज़रना
चलिए आज के पिटारे की ओर..
उठते तूफ़ान की नहीं कोई ख़बर...
एक माँ चीख़ी...
बच्चे की थी करुण पुकार
जग ने कहा -
माँ-बेटे की पीड़ा का विलाप! नहीं नियति पर ज़ोर।
पूछ-पूछ पता घरों का, देगा दस्तक यह तूफ़ान
बाक़ी मग्न झूमो जीवन में सुख का थामे छोर।
बेगाने
बाग़ के मालिक ने ढेला उठा कर वृक्ष की टहनियों पर दे मारा। चह-चह करते पंछी उड़ चले।
फुटपाथ पर बैठा नजफ़ भावशून्य आँखों से आसमान में उन्हें दूर तक जाते हुए देखता रहा।
“कहाँ गए होंगे? अपने-अपने बसेरों पर शायद?” नजफ़ की होठों की सूखी पपड़ाई पत्तियाँ थरथरा उठीं।
नर में नारायण ....
ये सच है कि कोई भी नेकी की राह आसान नहीं होती ।बहुत रुकावटें आती हैं । जब आप शुभ संकल्प लेते हैं तो कुछ लोग नकारात्मकता भी फैलाते हैं ऐसे वक्त पर ...लेकिन यदि आप उजले मन से नेकी के रास्ते पर आगे बढ़ते हैं तो राहें खुद आसान हो जाती हैं । कभी कहीं पढी पंक्तियाँ कुछ-कुछ याद आ रही हैं...
"साफ है मन यदि
राह है सच्चाई की
तो प्रार्थना के बिना भी
प्रसन्न होंगे देवता....!!”
चन्द अपनो की तलाश होती है ...
जिन्हें भीड़ नहीं
चन्द अपनो की
तलाश होती है
जो किसी भी कार्य के
अंत का सोच कर
आरम्भ करने से
पीछे नहीं हटतीं
क्या छुप पाओगे तुम ...
छुप जाओ, हर किसी से तुम पर क्या...
स्वयं से छुप पाओगे तुम
वो गलतियाँ , जो की थी
तुमने जानबूझकर ...
रह -रहकर अँधेरे कोणों से
अट्टहास करती जब तुम्हारे समक्ष आयेंगी...
तुम्हारे हृदय को कचोटती
काले साये की तरह तुम्हें डराएंगी
कहो भाग कर तब कहाँ जाओगे तुम
...
आज बस
कल फिर
सादर
मुट्ठी बाँध कर जनवरी फरवरी 31 30 31 30 करते थे कभी :)
ReplyDeleteदिन अगर इकतीस होते....तो
ReplyDeleteऔर बोझिल लगता..
तुम्हारा गुज़रना
क्या बात... दिल की बात कह दी। अब तो केवल मई नहीं हर एक दिन भारी सा लगता है।ए मुआ कोरोना न जाने कब भारत छोड़ेगा।
मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए अनेकानेक धन्यवाद आदरणीय।
मुखरित मौन की बहुत ही सुंदर प्रस्तुति. सभी रचनाएँ उम्दा हैं. आज की प्रस्तुति में मेरी रचना शामिल करने के लिए सादर आभार आदरणीय सर.
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteदिग्विजय महाशय/सर ! .. गुस्ताख़ी माफ़ .. शायद लॉकडाउन का असर हो ( वैसे सब पर कमोबेश है ही इन दिनों ) .. प्रस्तुति के आगाज़ में आपने मई बेचारे का एक दिन वेतन कटौती की तरह काट दिया है .. शायद ...
ReplyDelete" मई जा रही है
आभार मई..
गनीमत आप
मात्र तीस दिन की हो
दिन अगर इकतीस होते....तो
और बोझिल लगता..
तुम्हारा गुज़रना "
बुरे वक्त से हर कोई बचना चाहता है और बुरा वक्त है कि जल्दी टलता ही नहीं। रात के घन्टे तो वही रहते हैं, पर शादी की रात छोटी लगती है और किसी श्मशान में बीतती रात लम्बी ...
31 वाँ दिन लाकडाउन खुल रहा है
Deleteवो हर्षोल्लास का दिन है..
सो मई में गणना नहीं न किए हैं...
सादर...
31 वाँ दिन लाकडाउन खुल रहा है या पांचवीं तालाबंदी हो रही है
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