सादर अभिवादन
आज फिर हम
सोच का क्या कुछ भी सोच लें
पर विश्वास तो जम सा रहा है कि
ये सचमुच तीसरा विश्वयुद्ध ही है युगनिर्माण योजना के
एक अंक मे पढ़ा था कभी नास्त्रेदमस ने कहा था कि
ऐसा एक दिन भी आएगा कि इन्सान सूअर का मुखौटे में घूमेगा
वो सच होती दिख रही है सभी के मुख पर मास्क नज़र आ रहा है
अब रचनाएं.....
वह बिजली से चलनेवाली ट्रैन ..रवीन्द्र सिंह यादव
ज्ञात नहीं
अब कहाँ हो तुम
मैं आज भी हूँ
उसी स्मृति में गुम
जब तुम्हें सी ऑफ़ करने
रेलवे स्टेशन पर
प्लेटफ़ॉर्म सात पर
उस ट्रैन में बैठाया था
जो ले गयी तुम्हें
मुझसे बहुत दूर
वह बिजली से चलनेवाली ट्रैन
अब रचनाएं.....
वह बिजली से चलनेवाली ट्रैन ..रवीन्द्र सिंह यादव
ज्ञात नहीं
अब कहाँ हो तुम
मैं आज भी हूँ
उसी स्मृति में गुम
जब तुम्हें सी ऑफ़ करने
रेलवे स्टेशन पर
प्लेटफ़ॉर्म सात पर
उस ट्रैन में बैठाया था
जो ले गयी तुम्हें
मुझसे बहुत दूर
वह बिजली से चलनेवाली ट्रैन
जिस छड़ी के सहारे चलकर वह चश्मा ढूँढने अपने बेटे के कमरे में आये थे, उसे पकड़ने तक की शक्ति उनमें नहीं बची थी। पलंग पर तकिये के नीचे रखी ज़हर की डिबिया को देखते ही वह अशक्त हो गये। कुछ क्षण उस डिबिया को हाथ में लिये यूं ही खड़े रहने के बाद उन्होंने अपनी सारी शक्ति एकत्रित की और चिल्लाकर अपने बेटे को आवाज़ दी,
"प्रबल...! यह क्या है..?"
समाचार सुनते हुए एक दिन न्यूज चैनल पर
देखा-- "कोई बीमारी है जो चीन के वुहान प्रान्त में
फैल रही है ।" हॉस्पिटलों की अफरा-तफरी देख दुख
हुआ और बीमारी का कारण "वैट मार्केट" है यह जान
कर क्षोभ हुआ कि क्या जरूरी है कुछ भी खाना ।
ऐसे में ही एक दिन जाना कि इस बीमारी ने विश्व के
अन्य देशों के साथ-साथ भारत में भी दस्तक दे दी है ।
मुझको तेरा ही सहारा मेरे मालिक।
रोक इन बेमौत मरती जिन्दगी को।।
कैसे कह दूं अब मुहब्बत की ग़ज़ल मैं।
हर तरफ रोते देखा हर आदमी को।।
उलूक टाईम्स से ...डॉ. सुशील जोशी
‘उलूक’
रात के अंधे को
दिन की बात में
दखल नहीं देना होता है
कविता कहना
गुस्ताखी होगी
मगर
लम्बी
कविता का
फार्मेट
और
बकवास
करने का फार्मेट
लगभग
एक जैसा ही होता है ।
लग रहा है कि
अंक भी सिकुड़ते जा रहा है
बिलकुल हमारी तरह
सादर
उलूक टाईम्स से ...डॉ. सुशील जोशी
‘उलूक’
रात के अंधे को
दिन की बात में
दखल नहीं देना होता है
कविता कहना
गुस्ताखी होगी
मगर
लम्बी
कविता का
फार्मेट
और
बकवास
करने का फार्मेट
लगभग
एक जैसा ही होता है ।
.....
अब बसलग रहा है कि
अंक भी सिकुड़ते जा रहा है
बिलकुल हमारी तरह
सादर
व्वाहहहहह
ReplyDeleteबेहतरीन
सादर..
बेहतरीन संकलन . मेरे सृजन को संकलन में साझा करने के लिए सादर आभार आदरणीय .
ReplyDeleteफॉरमेट की बात खूब कही !
ReplyDeleteफॉरमेट में उलझी रहती है सोच भी !
दिलचस्प !