सादर अभिवादन..
आप बोर तो नहीं हो रहे हैं
लगातार हम ही हम हैं
अगर हो भी गए तो क्या
नहीं हुए तो वाह-वाह...
रचनाएँ कुछ यूँ है...
पराई साँस ...
आप बोर तो नहीं हो रहे हैं
लगातार हम ही हम हैं
अगर हो भी गए तो क्या
नहीं हुए तो वाह-वाह...
रचनाएँ कुछ यूँ है...
पराई साँस ...
मन-मर्जी ये साँस की, वो चले या रुके!
हूँ सफर में, साँसों के शहर में!
इक, पराए से घर में!
पराई साँस है, जिन्दगी के दो-पहर में!
चल रहा हूँ, जैसे बे-सहारा,
दो साँसों का मारा,
पर भला, कब कहा,
मैंने इसे! तू साथ चल!
असली मोगली
कार्टून का मोगली नहीं
असली जीवन का मोगली है
गाँवों का बचपन
चेहरों पर हंसी ही नहीं
अंदर से भी ठहाका है
कार्टून का मोगली नहीं
असली जीवन का मोगली है
गाँवों का बचपन
चेहरों पर हंसी ही नहीं
अंदर से भी ठहाका है
मेरी इस प्यास की कही तो ताब होगीं....
मेरी हर बूँद में,इश्क़ का समुन्दर हैं,
प्यासा रख कर,तू भी कहाँ आबाद होगीं,
मत करो फ़ोन बारहां नंबर बदल-बदल के,
हमको-तुमको तकलीफें बेहिसाब होगीं,
मेरी हर बूँद में,इश्क़ का समुन्दर हैं,
प्यासा रख कर,तू भी कहाँ आबाद होगीं,
मत करो फ़ोन बारहां नंबर बदल-बदल के,
हमको-तुमको तकलीफें बेहिसाब होगीं,
मन की कलाई पर
जानिब ! ..
तुम मानो ..
ना मानो पर .. मेरी
मन की कलाई पर
अनवरत .. शाश्वत ..
लिपटी हुई हो तुम
मानो .. मणिबंध रेखा ..
जानिब ! ..
तुम मानो ..
ना मानो पर .. मेरी
मन की कलाई पर
अनवरत .. शाश्वत ..
लिपटी हुई हो तुम
मानो .. मणिबंध रेखा ..
खामोश रिश्ता
ख़ामोशी भी एक तरह की सहमति है
मैं चुप रहकर तेरे जाने को रोक न सका
मजबूरी का रोना हम दोनो ने रोया
समाज की रीत, परिवार की इज़्ज़त
मजबूरियॉ दोनों ने गिनाए
ख़ामोशी भी एक तरह की सहमति है
मैं चुप रहकर तेरे जाने को रोक न सका
मजबूरी का रोना हम दोनो ने रोया
समाज की रीत, परिवार की इज़्ज़त
मजबूरियॉ दोनों ने गिनाए
आस मन पलती रही
सुख सपन सजने लगे,
युगल दृग की कोर पर।
इंद्रनील कान्ति शोभित
मन व्योम के छोर पर ।
पिघल-पिघल निलिमा से,
मंदाकिनी बहती रही ।
....
आज बस इतना ही
कल फिर मिलते हैं
सादर
सुख सपन सजने लगे,
युगल दृग की कोर पर।
इंद्रनील कान्ति शोभित
मन व्योम के छोर पर ।
पिघल-पिघल निलिमा से,
मंदाकिनी बहती रही ।
....
आज बस इतना ही
कल फिर मिलते हैं
सादर
वाह-वाह...
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति...
सादर..
आज के अंक की सभी रचनाएं बेहतरीन.....सभी ब्लोगरस को शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत शानदार प्रस्तुति।
ReplyDeleteकोई बोर नही हो रहा अगर ऐसे ही मधुर रचनाये मिलती रहे पढ़ने को
मन-मर्जी ये साँस की, वो चले या रुके!
हूँ सफर में, साँसों के शहर में!
इक, पराए से घर में!
पराई साँस है, जिन्दगी के दो-पहर में!
सादर
सादर आभार आदरणीय जफर जी।
Deleteसुंदर प्रस्तुति दीदी। नहीं हुए बोर।
ReplyDeleteछोटी प्रस्तुति परंतु बेहतरीन।
ReplyDeleteऔर जहाँ तक बोर होने की बात है तो मैं आपको बता दूँ कि आपके द्वारा प्रस्तुत रचनाओं को पढ़ने के बाद ही हमारे जीवन की बोरियत खत्म होती है। हम जब बोरपन महसूस करते है तब इसे दूर करने के लिए हम इस मंच पर आते हैं। आप यूँ ही बेहतरीन रचनाओं का संकलन प्रस्तुत करती रहें। धन्यवाद।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर