Monday, November 25, 2019

186...अंबर के गुलाबी देह से फूट अंकुराई धरा

सादर अभिवादन..
सप्ताह का पहला दिन
या ये कहिए माह नवम्बर का 
अंतिम सप्ताह
उठा-पटक जारी है
महाराष्ट्र में
देखें ऊँट किस करवट बैठता है
हमें क्या..कैसे भी बैठे
हमें तो रचनाएँ पढ़नी है...

एक टूटे हुए पत्ते ने जमीं पायी है ,
जड़ तक पहुंचा दे ,ये सदा लगायी है !

सादा कागज है मुंतज़िर कि आये गजल
क्या कलम में  हमने भरी रोशनाई है ?


फ़िक्र कल की क्यों सताए
आज जब है पास अपने,
कल लगाये  बीज ही तो
पेड़ बन के खड़े पथ में !

मौसमों की मार सहते
पल रहे थे, वे बढ़ेंगे,
गूँज उनकी दे सुनायी
गीत जो कल ने  गढ़े थे !


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लिखे थे दो तभी तो 
चार दाने हाथ ना आए
बहुत डूबे समुन्दर में 
खज़ाने हाथ ना आए

गिरे थे हम भी जैसे लोग 
सब गिरते हैं राहों में
यही है फ़र्क बस हमको 
उठाने हाथ ना आए


जिन्दगी में उलझनें अनेक  
कैसे उनसे छुटकारा पाऊँ
दोराहे पर खड़ा हूँ
किस राह को अपनाऊँ |
न जाने क्यूं सोच में पड़ा हूँ
कहीं गलत राह पकड़ कर
दलदल में न फँस जाऊं


भावों के वन्ध अतिरंजित हैं
नेपथ्य उठाना होता है -
षडयंत्री उत्सव में केवल गाल बजाना होता है ,
बजता वाद्य बजाता कोई साज दिखाना होता है

मन मालिन्य धुल गया
झर-झर झरती निर्झरी 
कस्तूरी-सा मन भरमाये
कंटीली बबूल छवि रसभरी

वनपंखी चीं-चीं बतियाये
लहरों पर गिरी चाँदी हार
अंबर के गुलाबी देह से फूट
अंकुराई धरा, जागा है संसार
...
आज बस..
कल फिर मिलते हैं
सादर


5 comments:

  1. मौन की मुखरित भाषा ...
    सुन्दर संकलन ... आभार मेरी ग़ज़ल को स्थान देने के लिए ...

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  2. शानदार अंक..
    साधुवाद...
    सादर..

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  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति सुंदर लिंक ।

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  4. आपका आभार यशोदा जी

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