सादर नमस्कार...
देवी जी घाट की ओर
प्रस्थान की तैय्यारियाँ कर रही है
आज हम हैं अपनी पसंदीदा रचनाएँ लेकर...
पर्व, प्रगतिशीलता और हम
जब मैं कॉलेज के दिनों में थी तब पहली बार नाम सुना था छठ पूजा का. एक दोस्त के घर से आया प्रसाद खाते हुए इसके बारे में थोड़ा बहुत जाना था. नदी में खड़े होने वाली बात दिलचस्प लगी थी तो अगली साल जब यह पर्व आया तो मैंने इसे देखने की इच्छा जताई और दोस्त की मम्मी की उपवास यात्रा में शामिल होकर गोमती किनारे जा पहुंची. बहुत गिने-चुने लोग ही थे वहां. बाद में कुछ और साथियों से बात की तो ज्यादातर को पता नहीं था इस पर्व का. उत्तर प्रदेश में कुछ ही जगहों पर यह मनाया जाता था शायद मूलतः बिहार में मनाया जाता है ऐसा बताया गया.
भाषा की ध्वस्त पारिस्थितिकी में ..
प्लास्टिक के पेड़
नाइलॉन के फूल
रबर की चिड़ियाँ
टेप पर भूले बिसरे
लोकगीतों की
उदास लड़ियाँ.....
एक पेड़ जब सूखता
सब से पहले सूखते
उसके सब से कोमल हिस्से-
उसके फूल
उसकी पत्तियाँ ।
बरगद ..
उसने सबको
खुली हथेली पर बोया था
बाँधकर संजोना नहीं आता था उसे
मुठ्ठी बाँधना भी तो न जानती थी वो
फिर भी......
वो लोग सिमटे रहे
उसी हथेली में
करीब रहने दो ...
कुछ भ्रम ही, बना रहने दो ।
कर्जदार हूं, आपके स्नेह का
मुझ पर इसे उधार रहने दो।
अपनों की याद दिलाता है ये कर्ज़
शिकवा करूँ न करूँ शिकायत तुमसे
शिकवा करूँ न करूँ तुमसे शिकायत कोई,
बिखर गया दर्द, दर्द का वह समंदर लूट गया,
समय के सीने पर टांगती थी शिकायतों के बटन,
राह ताकते-ताकते वह बटन टूट गया |
....
अब बस
कल कोई न कोई तो मिलेगा ही
सादर..
देवी जी घाट की ओर
प्रस्थान की तैय्यारियाँ कर रही है
आज हम हैं अपनी पसंदीदा रचनाएँ लेकर...
पर्व, प्रगतिशीलता और हम
जब मैं कॉलेज के दिनों में थी तब पहली बार नाम सुना था छठ पूजा का. एक दोस्त के घर से आया प्रसाद खाते हुए इसके बारे में थोड़ा बहुत जाना था. नदी में खड़े होने वाली बात दिलचस्प लगी थी तो अगली साल जब यह पर्व आया तो मैंने इसे देखने की इच्छा जताई और दोस्त की मम्मी की उपवास यात्रा में शामिल होकर गोमती किनारे जा पहुंची. बहुत गिने-चुने लोग ही थे वहां. बाद में कुछ और साथियों से बात की तो ज्यादातर को पता नहीं था इस पर्व का. उत्तर प्रदेश में कुछ ही जगहों पर यह मनाया जाता था शायद मूलतः बिहार में मनाया जाता है ऐसा बताया गया.
भाषा की ध्वस्त पारिस्थितिकी में ..
प्लास्टिक के पेड़
नाइलॉन के फूल
रबर की चिड़ियाँ
टेप पर भूले बिसरे
लोकगीतों की
उदास लड़ियाँ.....
एक पेड़ जब सूखता
सब से पहले सूखते
उसके सब से कोमल हिस्से-
उसके फूल
उसकी पत्तियाँ ।
बरगद ..
उसने सबको
खुली हथेली पर बोया था
बाँधकर संजोना नहीं आता था उसे
मुठ्ठी बाँधना भी तो न जानती थी वो
फिर भी......
वो लोग सिमटे रहे
उसी हथेली में
करीब रहने दो ...
कुछ भ्रम ही, बना रहने दो ।
कर्जदार हूं, आपके स्नेह का
मुझ पर इसे उधार रहने दो।
अपनों की याद दिलाता है ये कर्ज़
शिकवा करूँ न करूँ शिकायत तुमसे
शिकवा करूँ न करूँ तुमसे शिकायत कोई,
बिखर गया दर्द, दर्द का वह समंदर लूट गया,
समय के सीने पर टांगती थी शिकायतों के बटन,
राह ताकते-ताकते वह बटन टूट गया |
....
अब बस
कल कोई न कोई तो मिलेगा ही
सादर..
व्वाहहहह...
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति..
सादर...
शुभ संध्या
ReplyDeleteअति सुंदर प्रस्तुतीकरण
बढ़िया प्रस्तुति।
ReplyDeleteशुभ संध्या सर
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
मुझे स्थान देने के लिये तहे दिल से आभार आप का
सादर
वाह!!बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसुंदर अंक
ReplyDeleteबहुत बढ़िया पोस्ट्स ....
ReplyDeleteसभी रचनाकारों को साधुवाद