सादर अभिवादन...
ज़ियादा दिन नहीं न बचे हैं
दिसम्बर बस आने का कुलबुला रहा है
आने दो आएगा और चला भी जाएगा
हमें क्या.....
अपन तो आज की रचनाएँ देखते हैं.....
पढ़ा-लिखा इंसान भी अंधविश्वासी क्यों और कैसे बनता हैं?
पढ़े-लिखे इंसानों का भी अंधविश्वासी होने का कारण उनकी परवरिश में छिपा हुआ हैं। बचपन में अपने परिवार और आसपास के माहौल में इंसान जो कुछ देखता हैं, वो सब बातें उसके अवचेतन मन में गहरे तक बैठ जाती हैं। बचपन की इन्हीं सही-गलत बातों को इंसान सिर्फ़ और सिर्फ़ सही मानने लगता हैं। जब इंसान बड़ा होकर पढ़ता-लिखता हैं, तो वो दुविधाग्रस्त हो जाता हैं कि सही क्या हैं और गलत क्या हैं! बचपन में वो देखता हैं कि घर का कोई भी सदस्य जब घर से बाहर जा रहा हो और ऐसे में यदि किसी को छींक आ जाएं, तो इसे अपशकुन माना जाता हैं।
टुकड़ा टुकड़ा आसमान ....
अपने नीरस जीवन की शुष्कता को मिटाने के लिये
मैंने बूँद बूँद अमृत जुटा उसे
अभिसिंचित करने की कोशिश की थी
तुमने उस कलश को ही पद प्रहार से
लुढ़का कर गिरा क्यों दिया माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?
मुहावरों का प्रयोग .....
"कहीं की ईंट,कहीं का रोड़ा "
"भानुमति ने कुनबा जोड़ा ।"
सबके "हाथ पाँव फूले" हैं,
दोस्ती में "आँखे फेरे "है।
"फूटी आंख नही सुहाते "
वो अब "आँखों के तारें" है ।
कब कौन किस पर" आंखे दिखाये"
कब कौन कहाँ से "नौ दो ग्यारह हो जाये" ।
और 'बाइनाक्युलर' भी ...
पड़ता नहीं फ़र्क उम्र से
बारह की हो या फिर
हो कोई बहत्तर की
हो उनकी छोटी बहन-सी
या युवा पत्नी की जैसी
या फिर उनकी अम्मा की उम्र की
प्राथमिक स्कूल जाती हुई
नाबालिग लड़कियाँ हों या
नगर-निगम वाली औरतें
दर्दे दिल ....
जिनकी ख़्वाहिश में गुमगश्ता हुये
उस राजा की कोई और रानी है
रात कटती है यूँ रोते च़रागों की
ज्यों बाती ने ख़ुदकुशी की ठानी है
खबर ....
मंत्रीजी का जवाब सुनकर सहायक आश्चर्यचकित रह गया । वो मन ही मन सोच रहा था, ये वही पुलिस है जिसकी गुंडों से मुठभेड़ होती है तो बंदूक से गोली नहीं निकलती मुँह से ही ठाँय-ठाँय की आवाज निकालकर काम चलाना पड़ता है ।
‘सुनो! ये किसानों वाली न्यूज टीवी पर आ रही है क्या?’ मंत्रीजी ने सहायक से पूछा ।
‘नहीं, किसी भी न्यूज चैनल पर नहीं आ रही सिर्फ सोशल मीडिया पर ही दिखाई दे रही है । लगता है हुजूर ने सभी चैनल वालों का मुँह बंद कर दिया है, इसीलिए पाकिस्तान - पाकिस्तान खेल रहे हैं सभी चैनल वाले ।’ सहायक पिलपिला सा मुँह बनाकर चमचे वाले लहजे में धीरे से बोल गया ।
ज़ियादा दिन नहीं न बचे हैं
दिसम्बर बस आने का कुलबुला रहा है
आने दो आएगा और चला भी जाएगा
हमें क्या.....
अपन तो आज की रचनाएँ देखते हैं.....
पढ़ा-लिखा इंसान भी अंधविश्वासी क्यों और कैसे बनता हैं?
पढ़े-लिखे इंसानों का भी अंधविश्वासी होने का कारण उनकी परवरिश में छिपा हुआ हैं। बचपन में अपने परिवार और आसपास के माहौल में इंसान जो कुछ देखता हैं, वो सब बातें उसके अवचेतन मन में गहरे तक बैठ जाती हैं। बचपन की इन्हीं सही-गलत बातों को इंसान सिर्फ़ और सिर्फ़ सही मानने लगता हैं। जब इंसान बड़ा होकर पढ़ता-लिखता हैं, तो वो दुविधाग्रस्त हो जाता हैं कि सही क्या हैं और गलत क्या हैं! बचपन में वो देखता हैं कि घर का कोई भी सदस्य जब घर से बाहर जा रहा हो और ऐसे में यदि किसी को छींक आ जाएं, तो इसे अपशकुन माना जाता हैं।
टुकड़ा टुकड़ा आसमान ....
अपने नीरस जीवन की शुष्कता को मिटाने के लिये
मैंने बूँद बूँद अमृत जुटा उसे
अभिसिंचित करने की कोशिश की थी
तुमने उस कलश को ही पद प्रहार से
लुढ़का कर गिरा क्यों दिया माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?
मुहावरों का प्रयोग .....
"कहीं की ईंट,कहीं का रोड़ा "
"भानुमति ने कुनबा जोड़ा ।"
सबके "हाथ पाँव फूले" हैं,
दोस्ती में "आँखे फेरे "है।
"फूटी आंख नही सुहाते "
वो अब "आँखों के तारें" है ।
कब कौन किस पर" आंखे दिखाये"
कब कौन कहाँ से "नौ दो ग्यारह हो जाये" ।
और 'बाइनाक्युलर' भी ...
पड़ता नहीं फ़र्क उम्र से
बारह की हो या फिर
हो कोई बहत्तर की
हो उनकी छोटी बहन-सी
या युवा पत्नी की जैसी
या फिर उनकी अम्मा की उम्र की
प्राथमिक स्कूल जाती हुई
नाबालिग लड़कियाँ हों या
नगर-निगम वाली औरतें
दर्दे दिल ....
जिनकी ख़्वाहिश में गुमगश्ता हुये
उस राजा की कोई और रानी है
रात कटती है यूँ रोते च़रागों की
ज्यों बाती ने ख़ुदकुशी की ठानी है
खबर ....
मंत्रीजी का जवाब सुनकर सहायक आश्चर्यचकित रह गया । वो मन ही मन सोच रहा था, ये वही पुलिस है जिसकी गुंडों से मुठभेड़ होती है तो बंदूक से गोली नहीं निकलती मुँह से ही ठाँय-ठाँय की आवाज निकालकर काम चलाना पड़ता है ।
‘सुनो! ये किसानों वाली न्यूज टीवी पर आ रही है क्या?’ मंत्रीजी ने सहायक से पूछा ।
‘नहीं, किसी भी न्यूज चैनल पर नहीं आ रही सिर्फ सोशल मीडिया पर ही दिखाई दे रही है । लगता है हुजूर ने सभी चैनल वालों का मुँह बंद कर दिया है, इसीलिए पाकिस्तान - पाकिस्तान खेल रहे हैं सभी चैनल वाले ।’ सहायक पिलपिला सा मुँह बनाकर चमचे वाले लहजे में धीरे से बोल गया ।
बढ़िया प्रस्तुति..
ReplyDeleteसादर..
ReplyDeleteबेहतरीन संकलन
सादर आभार
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसुंदर संकलन। मेरी रचना को "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, यशोदा दी।
ReplyDeleteसार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज का संकलन ! मेरी रचना को इसमें स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया संकलन। मेरे ब्लॉग को स्थान देने के लिए हार्दिक आभारी हूँ।
ReplyDelete