सादर नमन..
सांध्य मुखरित मौन..
आजकल सोशियल पर
कई किस्से अखबारों पर पढ़ा जाता है
और पढ़ने के बाद भी दर-किनार
सांध्य मुखरित मौन..
आजकल सोशियल पर
कई किस्से अखबारों पर पढ़ा जाता है
और पढ़ने के बाद भी दर-किनार
भी कर दिया जाता है..
अनजान नम्बरों से कॉल
ओटीपी, कार्ड ब्लॉक , पुरुस्कार की सूचना
ये आम बात है..लालचियों की कमी नही न है
अनजान नम्बरों से कॉल
ओटीपी, कार्ड ब्लॉक , पुरुस्कार की सूचना
ये आम बात है..लालचियों की कमी नही न है
आज की शुरुआत एक ऐसा ही वाकया से
फेसबुक की उपयोगिता व इसका खुमार सामान्यजन के जीवन में जिस तेजी से फैल रहा है चलते-फिरते इंटरनेट युक्त स्मार्फोन के इस युग में ये किसी से छुपा नहीं है । नित नए मित्रों को बढाते चले जाने वाले इन मित्रों में कौन किस प्रवृत्ति और नियत से हमसे जुडा है, ये हम जान नहीं पाते । किंतु लाईक व कमेन्ट्स की चाह यहाँ हमारे क्रियाकलापों पर हॉवी रहती है । लडके-लडकियों की आपसी मित्रता फेसबुक पेज से इसके मैसेंजर पर आकर पहले चेटिंग फिर फोन संपर्क के माध्यम में परिवर्तित होते हुए नितांत अंतरंगता के दायरे में पहुँच जाती है जहाँ कई बार युवतियां ब्लेकमेल का शिकार होती भी दिखती रही हैं
ज़िंदगियाँ
निगल रहा प्रदूषण
क्यों पवन पर प्रत्यंचा
चढ़ायी है ?
कभी अंजान था मानव
इस अंजाम से
आज वक़्त ने
फ़रमान सुनाया है
चिंगारी
शोला बन धधक रही
मानव !
किन ख़्यालों में खोया है
सम्बन्ध विच्छेद
करोगे तुम तो
प्रेम प्रगाढ़
कैसे होगा।
पूनम की रात
आ गयी है
ये जिस्म
एक जान
कैसे होगा।
मुझे उसका नाम याद नहीं आ रहा पर उसकी याद बहुत आ रही है ........जब शादी होकर गई तो वो दौड़कर घर की चाबी लेकर आया था कोई 14-15 साल का लड़का था ..
लालमाटिया कोयला केम्प में चार बजे पत्थर कोयले की सिगड़ी जलने रखता और आधे घंटे बाद लाईन से एक-एक के घर में पहुंचाता ......
एक ही सिगड़ी पर 5-6घर का शाम का खाना बारी बारी सब बना लेते .....सभी वर्ग के घर थे .....साहब-मजदूर..... अमीर-गरीब, शाकाहारी -मांसाहारी .......
ख्वाब और हकीकत ....
कौन सपने दिखाए जाता है
नींद गहरी सुलाए जाता है
होश आने को था घड़ी भर जब
सुखद करवट दिलाए जाता है
मिली ठोकर ही जिस जमाने से
नाज उसके उठाए जाता है
...
आज बस
अब हम और आप
रोज के मुलाकाती हो गए हैं..
सादर
ख्वाब और हकीकत ....
कौन सपने दिखाए जाता है
नींद गहरी सुलाए जाता है
होश आने को था घड़ी भर जब
सुखद करवट दिलाए जाता है
मिली ठोकर ही जिस जमाने से
नाज उसके उठाए जाता है
...
आज बस
अब हम और आप
रोज के मुलाकाती हो गए हैं..
सादर
शुभ संध्या दी जी
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है आज की
मुझे स्थान देने के लिये तहे दिल से आभार
सादर
बढ़िया..
ReplyDeleteआज भारी श्रम हुआ..
बस दो दिन और..
फिर हम भी आते हैं..
सादर...
शुभ संध्या।बहुत ही सुंदर प्रस्तुति दीदीजी।सादर नमन।
ReplyDeleteउत्तम प्रस्तुति..., मेरी पोस्ट 'कितने घातक ऐसे फेसबुकी फ्रेन्ड' का भी इस प्रस्तुति में स्थान रखने हेतु आपका आभार...
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