सादर अभिवादन
आज सिरफ रचनाएँ ही है
लिखा-पढ़ी कुछ नहीं..
सीधे चलें आज की हमारी पसंदीदा रचना देखें
सीधे चलें आज की हमारी पसंदीदा रचना देखें
तमाम कोशिशों के बावजूद
उस दीवार पे
तेरी तस्वीर नहीं लगा पाया
तूने तो देखा था
चुपचाप खड़ी जो हो गई थीं मेरे साथ
फोटो-फ्रेम से बाहर निकल के
वास्तविकता को परे रख
दिखावे की ज़िंदगी जीने वाले
भर लेते हैं जीवन में
काँटे हमेशा चुभने वाले
यथार्थ के पथ पर काँटे सही
पर मार्ग उम्मीदों भरा
मिलने की खुशी भरपूर है
कोने में सिसक रही कातरता से
मानवता जकड़ी गयी दानवता से
राह दुर्गम ,कंटको से है रुकावट
जन जन शिथिल हो गया थकावट से।
हुये इतने मजबूर तो मोहब्बत क्या करते,
कभी छुड़ाते दामन कभी बे हौसला करते
बेवफा कहती है हमें तो कह ले दुनिया,
वफा का तलबगार होके भी हम क्या करते,
आज भी मिलते हैं ये झुनझुने और भोंपू
लेकिन आजकल के बच्चे इससे नहीं खेलते
फिर भी क्यों बनते हैं ऐसे खिलौने?
कौन खरीदता होगा इन्हें?
आज बस इतना ही
फिर मिलते हैं
सादर
फिर मिलते हैं
सादर
अच्छे सूत्र हैं।
ReplyDeleteदेसी खिलौनों से लिए शुक्रिया।
ReplyDeleteसुंदर लिंक्स, बेहतरीन रचनाएं, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार यशोदा जी
ReplyDeleteसुंदर रचनाओं को प्रस्तुत करता मुखरित मौन।
ReplyDeleteसभी रचनाएं बहुत सुंदर।
अच्छे सूत्र ... मौन संकलन बहुत कुछ कहत है ....
ReplyDeleteआभार मेरी रचना को जगह देने के लिए ...