सादर अभिवादन
आज की संक्षिप्त प्रस्तुति
रविवार की वजह से
पारिवारिक हलचल है
देखिए आज की रचनाएँ...
आज की संक्षिप्त प्रस्तुति
रविवार की वजह से
पारिवारिक हलचल है
देखिए आज की रचनाएँ...
मौत भले ही एक रहस्य हो
इस नश्वर शरीर के सुक्ष्म तत्वो में
विलीन हो जाने का
प्रकाश पुंज हो जाने का परंतु,
सिर्फ वहां ध्यान केंद्रित करो
मैं भी अधूरा जीने लगा हूँ,
तेरे ही खयालों में,
बढ़ने लगी है उलझन मेरी,
तेरे ही सवालों में।
तुझे पाने की चाहत मेरी,
अपना बनाने की आदत मेरी,
बड़ी मुश्किल है कैसे बताएँ,
तू ही है अब राहत मेरी।
स्नेहिल अंगुलियों की
छुवन मांगता है मन..
बन्द दृगों की ओट में
नींद नहीं..जलन भरी है
चुप हैं ये दिशाए, कहीं बज रहे हैं साज!
धड़कनों नें यूँ, बदले हैं अंदाज!
ओढ़े खमोशियाँ, ये कौन गुनगुना रहा है?
हँस रही ये वादियाँ, ये कौन मुस्कुरा रहा है?
डोलती हैं पत्तियाँ, ये कौन झूला रहा है?
कर रही है खुशगवार
रातरानी की यह मादक महक
मुझको...
लदी हुई हैं शाखें
कोमल उजले सफेद फूलों से,
खिल उठते हैं हममिजाज़ मौसम में
गुंचे गुलों के
बस..
कल तक के लिए आज्ञा दें
सादर
कल तक के लिए आज्ञा दें
सादर
उम्दा प्रस्तुति..
ReplyDeleteसादर...
वाह लाजवाब।
ReplyDeleteरातरानी की खुशगवार मादक महक भरी इस प्रस्तुति में मेरी रचना को भी स्थान देने हेतु आभारी हूँ आदरणीया।
ReplyDeleteलाजवाब संकलन । मेरे सृजन को स्थान देने हेतु आपका हार्दिक आभार ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति दी जी
ReplyDeleteसादर
सुंदर लिंक्स का समायोजन। मेरी रचना को स्थान देने के लिए विशेष आभार।
ReplyDeleteपुरुषोत्तम जी की चुप है दिशाएं और मीना भारद्वाज जी की क्षणिकाएं दोनों ही कविताएं बहुत आनंदित कर गई बहुत अच्छे लिंक्स का चयन
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