सादर अभिवादन
आज दो दिन के हुए लल्ला
छः दिनों तक चलेगा हल्ला
छः दिनों तक चलेगा हल्ला
जन्म दिवस तो नंद लाल का
हम हर वर्ष मनाते है।
पर वो निष्ठुर यशोदानंदन
कहाँ धरा पर आते हैं।
भार बढ़ा है अब धरणी का
पाप कर्म इतराते हैं।
वसुधा अब वैध्व्य भोगती
कहाँ सूनी माँग सजाते हैं।
शब्दहीन ओंठों पर चिपके हुए हैं मुद्दतों से,
ख़्वाबों के ख़ूबसूरत चुम्बन, आईने
की हंसी में है व्यंग्य मिलित
कोई महिमा कीर्तन,
कौन किसे है
छलता
हैं
मन से सोचा
दिल से दोहराया
इतना प्यारा
फिर भी न अपना
घर दिल का
रहा कलुष भरा
स्वच्छ न हुआ
वो बचपन था, या अल्हड़पन था,
यौवन में डूबा, इक तन था,
इक दर्पण था, या, मेरा ही मन था,
कंपित होता, हर इक कण था!
सड़कों की
बदल रही
लम्बाई
चौड़ाई
बदल रहा
घर का
परिमाप है।
गाँवों में
शहर
का जन्म
हो रहा है!
आज के लिए बस
कल फिर..
Thanks for the post
ReplyDeleteसुंदर रचनाओं का संकलन ।
ReplyDeleteसादर।
प्रस्तुति बहुत सुंदर लगी, शानदार लिंक सभी रचनाकारों को बधाई।
ReplyDeleteसभी लिंक बेहतरीन।
मेरी रचना को मुखरित मौन में शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
सादर ।