सादर अभिवादन
बूँदें!
आँखों से टपकें
मिट्टी हो जाएँ।
आग से गुज़रें
आग की नज़र हो जाएँ।
रगों में उतरें तो
लहू हो जाएँ!
या कालचक्र से निकलकर
समय की साँसों पर चलती हुई
मन की सीप में उतरें
और
मोती हो जाएँ|
-मीना जी
...
अब रचनाएँ
गाँव की वह छोटी-सी लड़की
बहुत उदास हो जाती है,
जब भी उसके माँ-बाप कहते हैं,
‘काश,हमारे यहाँ बेटा पैदा होता.’
ये तेरा है ये मेरा है
लड़ते रहे बनी ना बात,
खून जिस्म में कमा के लाते
फिर भी सुनते सौ सौ बात
मुंह फेरे सब अपनी गाते
अपनी ढपली अपना राग,
सूरज के तेज ने टहनियों पर
टाँगा है दायित्त्व भार
चाँदनी के झरते रेशमी तार
चाँद ने गढ़ा है सुनहरा जाल।
आज कुछ अजब सा देखा
बात तो दोनों की सही थी
दोनों ही अपने पेट वास्ते
जीवन का नियम संभाले
एक तो बिल से निकला
चलो
खुद से
एक समझौता करते है
मुझे नींद आ जाये
कुछ ऐसा करते है
आज के लिए बस
कल फिर..
bahut sundar ank shamil karne hetu abhar
ReplyDeleteलाजवाब
ReplyDeleteबेहतरीन अंक
मुझे यहाँ स्थान देने के लिए आभार आपका 🙏 सादर
व्वाहहहह
ReplyDeleteसादर..
बहुत ही सुंदर सराहनीय प्रस्तुति।
ReplyDeleteमुझे स्थान देने हेतु दिल से आभार दी।
सादर
सुंदर प्रस्तुति। मुझे स्थान देने के लिए आभार
ReplyDeletebahut hi sundar rachanon ki prastuti hai aur ismein meri rachna ko shamil karne ke liye dhanyavaad.
ReplyDeletesadar praam!