सादर अभिवादन
जा रहा है अगस्त भी
परेशान होने की बारी हमारी
खत्म ही समझिए
ये परेशानियां अब पड़ोसी देशों में
चली गई है....
ये मत समझिएगा कि गई परेशानी
गई है तो कुछ लेकर आएगी
और लाएगी तो कुछ मीठा ही लाएगी
महफ़िल से अचानक ही अधर में चले जाना,
देखो तो ग़ज़ल में वो असर है कि नहीं है |
छलनी जो किया तूने हुआ कैसे मैं जालिम,
अब सोच कोई मुझमें कसर है कि नहीं है |
यही समय होता है
भाग निकलने का
एकांत की ठंडी
कालकोठरी से
किसी भी दिशा में
किसी भी गली में
किसी भी सड़क पर
बस, एकांत से परे
प्रस्तर युगीन,
किसी एक आदिम बिहान में
कदाचित, अपना पुनर्मिलन हो,
गुह कंदराओं से निकल कर,
अरण्य वीथिकाओं में
कहीं हिम कणों से
धुल कर पारदर्शी ये जीवन हो,
आज तुम्हें देख कर
लगता है
तुम तो किसी और आंगन में
तुलसी,मनीप्लान्ट,
पीपल,बरगद
सब कुछ हो…
आज कक्षा में एक विद्यार्थी को डांटते हुये जब मैने ने कहा- कि तुम पढाई में बिल्कुल भी मन नही लगाते हो, तभी तुम्हारे अंक बिल्कुल भी अच्छे नहीं आते। खेल कूद के अलावा जरा पढाई पर भी ध्यान दो। तो वह नन्हा सा बच्चा मासूमियत से बोला- मैडम जी ये बिल्कुल भी क्या होता है?
आज के लिए बस
कल फिर..
व्वाहहहह..
ReplyDeleteहर रचना अपना एक प्रभाव छोड़ती हुई । सुंदर सार्थक संकलन के लिए बधाई आदरणीय दीदी 🙏
ReplyDeleteसुंदर सार्थक संकलन । मेरी रचना को संकलन में शामिल करने के लिए सादर आभार यशोदा जी।
ReplyDeleteहमारी रचना को स्थान देने के लिये बहुत आभार, बहुत सुंदर संकलन
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