सादर अभिवादन
अलसाया सा भादो
सावन ही की तरह
सूखा सा ऊमस भरा
ठीके है..सामने तीज भी है
रचनाएं देखिए ...
शाश्वत सच मैं चौराहे पर खड़ा हुआ
क्योंकि मुश्किल में पड़ा हुआ
मैं इधर जाऊं या उधर जाऊं,
यह प्रश्न सामने खड़ा हुआ ,
"कन्यादान कौन करेगा..?"
नेहा और नितिन की शादी के समय पण्डित जी ने कहा।
दोनों की शादी मन्दिर में हो रही थी..।
"आप अनुमति दें तो मेरा दोस्त दीपेन कन्यादान करना चाहता है
और वह अपनी पत्नी के साथ यहाँ उपस्थित भी है..।
सामने आ जाओ दीपेन..," वर नितिन ने कहा।
सूत भर हिला नहीं
थिर शांत झील में
चाँद को समाना है
दूर नहीं जाना कहीं
निज गाँव आना है
नदिया-तीरे
झील में उतरता
हौले से चंदा
बहती नदी
आँचल में समेटे
जीवन सदी
सुख और दुख
नदी के दो किनारे
खुली किताब
चंदा चमका भाल पर,रजनी शोभित आज।
पूनम के आलोक में,मुख पर लाली लाज।।
मुख पर लाली लाज,चुनर है तारों वाली।
लगे सलौनी रात,कहें क्यों उसको काली।
....
आज विराम यहीं पर
सादर
सादर
आज का अंक तो चाँद की ज्योत्स्ना के नाम लग रहा है, बाकि रचनाएँ भी पठनीय हैं, बहुत बहुत आभार यशोदा जी, मुझे भी इस इस सुंदर प्रस्तुति में शामिल करने हेतु !
ReplyDeleteचाँद सी चमकती राखी पहने सुंदर अंक बहुत शुभकामनाएँ यशोदा दीदी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteचाँद ने मौन को मुखरित किया, कुछ हम भी बोल पड़े और इधर चाँद भी आभा बिखेर रहा।
सुंदर अंक।
सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
उम्दा लिंकों से सजी लाजवाब प्रस्तुति।
ReplyDeleteअसीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteश्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद