सादर अभिवादन
ब्लॉग नमस्ते की शुरुआत
2009 होली के दिन से
ब्लॉगर हैं नूपुर शाण्डिल्य
69 फॉलोव्हर, 11329 अब तक पृष्ठ दृश्य
गूढ़ संवाद...
सांध्य रवि ने कहा
मेरा काम लेगा कौन ?
रह गया सुन कर
जगत सारा निरुत्तर मौन .
एक माटी के दीये ने
नम्रता के साथ
कहा जितना बन सकेगा
मैं करूंगा नाथ .
कोई भी बात
सिर्फ़
कहने भर से
पूरी नहीं हो जाती ।
बात जब दिखलाती है,
अपना असर -
तब जानी जाती है ।
मसलन,
एक बात इतनी सुहाती है,
कि सिरहाने रख कर सोई जाती है ।
एक बात महाभारत होती है,
जो हर यक्ष प्रश्न का उत्तर देती है ।
एक बात रामचरित मानस होती है,
जो जीवन का आधार होती है ।
आज
या तो बारिश आयेगी
भीतर तक भिगो कर जाएगी
आँखें नम कर जाएगी,
या फिर
आयेगा ठंडी हवा का झोंका
हाथ मिलाएगा
और पूछेगा
मन के मौसम का हाल ।
खाई में गिर के वो बचेगा कैसे ?
गोविंद आपने थामा था जैसे
भक्त प्रह्लाद को अपने हाथों में
अपना लेना उसे भी अंक में भर के ।
न पत्तों की सरसराहट न कोई पदचाप
ऐसे में दूर कहीं से आने लगी मंद-मंद
मंदिर के घंटों की ध्वनि लयलीन और स्पष्ट
हृदय का कोलाहल करती शांत और आश्वस्त
गगन पर टंके चंद्रमा को भी हो रहा कौतूहल
बोझिल परिवेश में हुआ भला-सा परिवर्तन
मौसम रहमदिल हो गया है ।
हथेली में खुशबू बस गई है ।
जैसे मेंहदी रचती है ।
क्या हो यदि यही बौराई सुगन्ध
गुपचुप समा जाए
हाथ की रेखाओं में !
बदलें नहीं हाथ की रेखाएं
बस बौरा जाएं !
.......
कल के लिए कुछ याद नहीं आ रहा है
किस ब्लॉग से परिचय करवाऊँ
आप ही सुझाइए
सादर
कल के लिए कुछ याद नहीं आ रहा है
किस ब्लॉग से परिचय करवाऊँ
आप ही सुझाइए
सादर
पठनीय सूत्र ,सुंदर रचनाएँ नूपुर जी !!धन्यवाद यशोदा जी नूपुर जी की कवितायेँ साझा करने हेतु !!
ReplyDeleteआभार दीदी..
Deleteआपसे निवेदन..
अपनी पसंदीदा पांच रचनाओं के लिंक
दीजिएगा....
अग्रिम आभार..
सादर नमन..
अनुपमा जी, आपका प्रोत्साहन पाकर मन प्रसन्न हुआ. सविनय आभार. नमस्ते.
Deleteनूपुर जी की रचनाएँ अक्सर पढ़ती रहती हूं,बहुत सुंदर तथा सराहनीय होती हैं, आज एक साथ कई रचनाओं से परिचय करवाने के लिए यशोदा दीदी,आपका बहुत बहुत धन्यवाद,ज्योति जी आपको हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई।
ReplyDeleteजिज्ञासा जी, पढ़ने और सदैव सराहने के लिए ह्रदय ताल से आभार. नमस्ते.
Deleteबहुत ही सुंदर रचनाएँ होती हैं नुपूर जी की। आपकी बहुत सी रचनाएँ पढ़ी हूँ और आज यहाँ दिए गए सभी लिंक्स भी पढ़े। अनूठे शब्द चित्र, भावों का खूबसूरत संयोजन व सटीक उपमाएँ आपके लेखन को विशिष्ट बनाती हैं। बहुत शालीन व बेहतरीन लिखती हैं आप। कमेंट माडरेशन लगा हुआ है, उसे हटा लेंगी तो अच्छा लगेगा। पाठक को अपनी टिप्पणी तुरंत प्रकाशित होने पर संतोष होता है। बधाई एवं शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteजी, मीना जी आपका मार्गदर्शन पाने का सौभाग्य कई बार मिला है. इतनी बारीकी से समीक्षा करने के लिए आपका हार्दिक आभार.
Deleteपहले भी आपने मॉडरेशन हटाने का ज़िक्र किया था. आपको लिखा भी था. शायद तब आपकी नज़र में नहीं आया होगा. समस्या यह है कि मॉडरेशन हटाते ही बेकार की टिप्पणियों की बरसात होने लगती है. मुझे बताइए कि मॉडरेशन हटाने के उपरांत फ़ालतू टिप्पणियों को कैसे रोका जाये. आपको अवश्य पता होगा. कृपया मुझे बताइए इस समस्या का समाधान. नमस्ते.
आदरणीया यशोदा जी,सुखद आश्चर्य था, आज अचानक यह उपहार पाना. आपने 'नमस्ते' को चुना, आभारी हूँ. पिछले कई दिनों से परिवार में अस्वस्थता का दौर चल रहा है. लिखना-पढ़ना सब बंद है. जो सूझता है, वह भी विसंगतियों का रेला बहा ले जाता है. 'हक्के-बक्के' रह जाने की इस मनःस्थिति में ये जैसे तारा टूटा और झोली में आ गिरा. धन्यवाद.
ReplyDeleteअनुपमा जी और मीना जी की सहृदय सराहना और आपके उदार चयन का संबल मिला. कृतज्ञ हूँ.
अस्त होते सूर्य की पंक्तियाँ बहुत पहले धर्मयुग में छपे एक लेख में पढ़ी थीं. ये कवि गुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर की बंगला कविता का हिंदी अनुवाद है. लेख शायद बच्चन जी का था. ठीक से याद नहीं. पर यह बात मन में हमेशा के लिए अटक गई. छोटे होने का मतलब जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेना नहीं. अपनी सामर्थ्य अनुसार योगदान करना सभी का उत्तरदायित्व है. यही याद रखने की कोशिश में ये पंक्तियाँ नमस्ते पर वंदनवार की तरह टांक दी हैं.
लिख कर रख देते हैं, कोई पढ़े न पढ़े. इस उम्मीद में कि शायद कभी किसी के काम आ जाये लिखा हुआ.
संयोग ही है कि यह मूल बांग्ला कविता और उसका मराठी अनुवाद हमारे यहाँ दसवीं की मराठी पुस्तक में पढ़ाई जा रही है।
Deleteमूल बंगाली कविता यह है।
केलै वै मौर कार्य
कहै संध्या रवि
सुनिया जगत रहे निरुत्तर
माटिर प्रद्वीप छिले
छे कहिल स्वामी
आमार हे टकू
करिब ता अभि
- गुरुदेव रवींद्रनाथ टागोर
मीना जी, आपको पता है कितने वर्षों से इस कविता को ढूंढ रहे हैं हम !
Deleteऔर आज जाकर आपने खोज पूरी की !
अपार आनंद ! असीम आभार !
बहुत सुंदर
ReplyDeleteभारती जी, धन्यवाद. नमस्ते.
Deleteसुन्दर रचनाएं, बहुत-बहुत बधाई, शुभकामनाएं 🌹 नूपुर जी
ReplyDeleteआपका अनंत आभार. नमस्ते. पढ़ते रहिएगा.
Deleteप्रिय नूपुरं जी,
ReplyDeleteस्नेहिल नमस्कार
आपकी रचनाएँ सहज भाव से अभिव्यक्त विशिष्ट अनुभूति होती है। सरल उपमाएं सदैव विस्मय से भरती है।
अति सुंदर रचनाओं से सजे आज के संकलन के लिए बधाई आपको।
शुभकामनाएं।
सस्नेह।
श्वेता जी, आपका कहा सर-आँखों पर ! पढ़ती रहिएगा. मार्गदर्शन करती रहिएगा.
Deleteमन तो हमारा भी होता है कि हमारी हर सुबह बौराई हुई सी हो। बागों में स्वच्छ हवा और हरियाली का आनंद लें। बस पिछले कुछ समय से जो मौसम का हाल है, उसके ख़ौफ़ के काले बादलों के हटने का इंतज़ार है।
ReplyDeleteआपके ब्लॉग की सभी रचनाएं श्रेष्ठ और सुंदर हैं।
धन्यवाद, दिलीपजी.
Deleteहम सब मिल फूल खिलाएंगे.
मौसम खुशनुमा बनाएंगे.
Noopur, love to read your poetry-seems to touch some corner of my heart , almost always. Many a times, the words reciprocate my feelings. ......and all of it in simple Hindi !!
ReplyDeleteKeep writing and spreading joy!!
Best wishes .
Dearest Vineeta, thank you for your kind appreciation. It makes me happy to know that words celebrate what connects us. Do keep reading.
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