Wednesday, August 25, 2021

741 ...शून्य विस्तार, तुम्हारी आँखों में

सादर अभिवादन
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
बस ये आ ही गई ....
देखें माखनचोर करेगा क्या
....
युग बदल रहा है
लोग भी बदल रहे हैं
बदल तो मौसम भी रहा है
इस अदला-बदली में तो
लेखकों की सियाही
के रंग भी बदल रहे है
पत्रकार कवि हो रहे हैं
और उलटे हो रहे हैं कविगण
पत्रकार बनकर....

यहाँ पर लिखना ज़रूरी नहीं
पढ़वाना जरूरी है...
रचनाएँ....

पूरक जब मतभेद, चली जीवन नैया
खट्टी-मीठी रार, तुम्हारी आँखों में।।

रही अकिंचन मात्र, मिला जबसे संबल
करे शून्य विस्तार, तुम्हारी आँखों में।।


प्रियतम के प्यार का
रँग वो ख़ुमार का

उड़ेलता हुआ कभी
बिखेरता हुआ कभी
लहर लहर समुद्र पर
सूरज के प्यार का
रँग वो ख़ुमार का


कोई नहीं पढ़ना चाहता, किसी का
जीवन-वृत्तांत, पड़े रहते हैं
असंख्य पाती पुराने
लिफ़ाफ़े के
अंदर,


ये सब
शायद कुछ ऐसा ही है
जैसे गुलाब की सुगंध
फूल में न होकर
काँटों में से बरस रही हो !


महंगा खाना खाने के लिए
महंगे कपड़े पहनते हैं
और वो दो जून की रोटी में
दिन रात एक कर देते हैं
इसमें कुछ ग़लत नहीं है
यह सोच ही ग़लत है

आज के लिए बस
कल फिर..

 

3 comments:

  1. बहुत सुंदर लिंक्स।

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  2. सुन्दर लिंक्स संयोजन, आभारी हूँ आपने मेरी कविता को स्थान दिया। । बहुत बहुत धन्यवाद।

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