Saturday, August 28, 2021

744 ...मैं तो शाश्वत प्रेम से मिल रहा हूंँ

सादर अभिवादन
कल रात सपने में दिखा
भारत के नक्शे में
अफगानिस्तान और पाकिस्तान  दोनों दिखे
आप लोग भी आमीन लिखिए
रचनाएं पढ़िए ...

जब जीवन का दान मिले,
वंश साथ चलते,
मिटते जो सारे सुख फिर,
रहो हाथ मलते।
छोड़ दो अंहकार अभी,
हठ जो यह ठानी।
आजा शरण....


कान्हां तुम्हारी बाँसुरी का स्वर
लगता मन को मधुर बहुत
खीच ले जाता वृन्दावन की गलियों में
मन मोहन जहां तुम धेनु चराते थे  |


लाख जतन किए
लाख दुआएँ माँगी
रोकूँ किसी को
स्वप्न दफ़न हुए
आग लगा दी मैंने
अपने किसी को
पीड़ा हुई अपरम्पार


भयंकर भ्रामक इन कवि मंचो की
वेदना भरी तस्बीर खीच रहा हूँ
जिनको साईन तक नही आती
वो साहित्य मंच चला रहे है


जब देखो मेरा  जनाजा जाते हुए,
पीड़ासक्त होकर रोना नहीं...
मैं अलविदा नहीं कह रहा हूंँ,
मैं तो शाश्वत प्रेम से मिल रहा हूंँ।


हम एक इकाई
बस चिरकाल तक
समय से बंधे,
जड़त्व से बंधे
एक हाथ की इस दूरी से
निभाते जाना प्रेम
तू भी हमारी तरह

........
आज के लिए बस

कल फिर.. 

3 comments:

  1. सभी रचनायें एक से बढकर एक, सभी को मेरी शुभकामनाये। यशोदा जी आपको मेरा विशेष धन्यवाद।

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  2. बहुत सुंदर संकलन, मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया।

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  3. सुंदर रचनओं का संकलन । बहुत शुभकामनाएं आदरणीय दीदी।

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