सादर अभिवादन..
आज की दौड़ में शामिल हुई है
मुदिता दीदी..
एहसास अंतर्मन के
2007 से प्रारंभ, 94 फॉलोव्हर, पेज व्यू दिखी नहीं
ना शायरा हूँ ना लेखिका..
बस अंतर्मन के भावों को शब्द दे देती हूँ..
जीवन को जितना जाना समझा है
उसके आधार पर कुछ बाँटने की कोशिश की है..
और समझने की प्रक्रिया जारी है
आपका ब्लॉग कापी प्रोटेक्टेड है
टाईप की हूँ..
मात्राओं की त्रुटि सामान्य समझिएगा
आपका ब्लॉग कापी प्रोटेक्टेड है
टाईप की हूँ..
मात्राओं की त्रुटि सामान्य समझिएगा
रहे भटकाते तुम
सभी को ,
राह दिखाती मैं हूँ
नहीं हटूँगी पथ से अपने
मैं इसी जलने में
खुश हूँ मगन हूँ ..
बिन दीपक बाती अधूरी
बाती बिना दिया भी हारा
भीग दिए के प्रेम तेल में
रोशन करते ये जग सारा
आह!!
इंसानों की
फितरत में
क्यूँ इतना
स्वार्थ है !!
काश...
सीखे
बेज़ुबानों से ही
क्या परमार्थ है!!!
साँसों में तेरी सांसें हैं
धड़कन में धड़कन तेरी
नहीं है मुझमें ऐसा कुछ भी
जहाँ नहीं तुझको पाया
छाया हो तुम ,प्रेम की मेरे
मैं छाया की प्रतिछाया
कभी वो
बनता
बहता दरिया ,
बने कभी
एक शांत
सरोवर,
झील गहन
कभी
कूप रूप कभी
है असीम
कभी एक सागर..
तू झूठा ,
अफ़साने झूठे
सच है तेरा प्यार ,
लफ़्ज़ों में कब
हुआ है मुमकिन
रूहों का इज़हार .....
घिरि घिरि बदरा आवै नभ में
उठि आय हूक मोर जो नाचे
पायल चुप,सूना है अंगना
कोयल शोर मचाय सखी री
सजना क्यूँ नाहिं आय सखी री
सावन बीतौ जाय सखी री.......
.....
आज बस
कल के लिए और तलाशते है
सादर
आज बस
कल के लिए और तलाशते है
सादर
मुदिता जी की भावप्रबल लेखनी है | ब्लॉग तो पढ़ते ही रहे है | फिर से पढ़वाने के लिए आभार यशोदा जी और आप दोनों को लेखन के लिए अनेक शुभकामनायें !!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार अनुपम6 जी प्रोत्साहन देते रहने के लिए 🙏🙏🌷🌷
Deleteदो का दम, चाक चौबंद दमखम
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
मुदिता जी की सभी रचनाएँ पढ़ी, बहुत अच्छी लगी
Deleteहार्दिक शुभकामनाएं मुदिता जी को
बहुत शुक्रिया कविता जी समय देने और पसंद करने के लिए 🙏🙏🌷🌷
Deleteसुस्वागतम मुदिता जी !आपकी रचनाएँ पढ़ीं | बहुत उम्दा लेखन है आपका | यूँ अक्सर जाती रहती हूँ आपके ब्लॉग पर | जितनी आपकी रचनाएँ पठनीय हैं , उतनी ही दर्शनीय
ReplyDeleteहैं आप || यूँ ही लिखती रहिये | मेरी शुभकामनाएं और बधाई |
आपकी टिप्पणी ने भावविभोर कर दिया रेणु जी ,धन्यवाद 🙏🙏🌷🌷
Deleteभेदविभेद करा देते हैं
ReplyDeleteकाल, नाम और ये काया
छाया हो तुम ,प्रेम की मेरे
मैं छाया की प्रतिछाया
युगों युगों से जीते आये
जिस पावन 'अनाम' को हम
समय की सीमा लांघ लांघ वो
फिर फिर जीवन बन आया
छाया हो तुम ,प्रेम की मेरे
मैं छाया की प्रतिछाया//////
👌👌👌👌🙏🙏🙏🌷💐💐
🙏🙏🙏😊😊😊
Deleteएक बहुत अच्छे ब्लॉग से परिचय कराने हेतु आदरणीया यशोदा दीदी का आभार।
ReplyDeleteमुदिता जी के ब्लॉग से ली गई सारी रचनाएँ पढ़ीं। बेहतरीन लेखन है आपका। आपके दूसरे ब्लॉग कहानियाँ पर भी नजर डाल आई हूँ। कहानियाँ मेरे पसंद की हैं, बल्कि लघु उपन्यास हैं। बुकमार्क कर ली हैं। जल्दी ही उन्हें पढूँगी। बहुत सारी शुभकामनाएँ व बधाई।
बहुत बहुत आभार मीना जी 🙏🙏सनरः बनाये रखिये ,कहानियों पर प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा 🌷🌷🙏🙏
Deleteबहुत सुंदर सराहनीय अंक, मुदिता जी की रचनाओं से परिचय कराने के लिए यशोदा दीदी आपका हार्दिक धन्यवाद। मुदिताजी को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई 💐💐
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद जिज्ञासा जी 🙏🙏🌷🌷
Deleteसभी पाठक वृन्द को मुदिता की तरफ से धन्यवाद प्रेषित करती हूँ । वो आज कल अन्यत्र व्यस्त है तो शायद ये लिंक न देखा हो । ये लिंक भी उसको भेज दूँगी ।
ReplyDeleteदरअसल मुदिता मेरी छोटी बहन है । सबने उसके लेखन की सराहना की सबका हृदय से आभार । यशोदा उसके ब्लॉग को लेने के लिए शुक्रिया ।
धन्यवाद दीदी मुझे लिंक भेजने के लिए वरना इतने सारे स्नेह से वंचित रह जाती मैं 😊 यशोदा जी भी बहुत आभार 🙏🙏🌷🌷
Deleteप्रिय यशोदा जी मेरी रचनाओं को चुनने और उनके अंशों को लिखने की मेहनत करने में आपका स्नेह दृष्टिगोचर है ..बहुत बहुत आभार इस प्रेम के लिए ..मेरी खुद की कुछ बहुत ही पसंदीदा रचनाएं चुनी हैं आपने धन्यवाद 🙏🙏🙏🌷🌷🌷
ReplyDeleteमुदिता जी की प्रमुदित कर देने वाली रचानाओं से भरपूर इस अंक के लिए आभार! सही में, पवन दुआर खटकाय सखी रे!
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