Saturday, March 20, 2021

666...मैं हिमालय बोल रहा हूँ

 सांध्य दैनिक के आज के अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन
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आज गौरेया दिवस है।
पढ़िए मेरी बिटुआ की लिखी पहली कविता-
चूँ-चूँ करती 
गाती चिड़िया,
गाते गाते 
सबका मन 
मोह जाती चिड़िया,
उसकी 
मधुर वाणी से 
सब खुश हो जाते,
चुगते-चुगते 
खा जाती है दाना,
तिनका-तिनका 
जोड़कर 
बनाती अपना घोंसला,
फिर,
आता है एक चूजा,
जिसे नहीं आता है 
उड़ना,
फिर धीरे धीरे 
वह सीखता है 
उड़ना,
अपनी माँ से।
#मनस्वी प्राजंल
(2017)
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अब आज की रचनाएँ पढ़िए-

पढ़िए एक अलग अंदाज़ और
शब्दों के नायाब प्रयोग से रची गयी
दिगम्बर नासवा सर की बेहतरीन गज़ल
शरबत घोला जब


टैली-पैथी इसको ही कहते होंगे,
दिखती हो तुम दिल को कभी टटोला जब.
 
बीस नहीं मुझको इक्किस ही लगती हो,  
नील गगन के चाँद को तुझसे तोला जब.
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समसामयिक विषयों के प्रति सजगता,
व्यवस्था के प्रति असंतोष से उत्पन्न विचारों को शब्द देना रवींद्र जी की लेखनी बख़ूबी जानती है।
विकास और भारत

वर्ण-व्यवस्था का 
निरर्थक विकास किया 
और वर्गों में बँटी 
दुनिया में 
कुछ आगे हुआ 
तो कहीं 
बहुत पीछे रह गया 
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आत्ममुग्धता के इस दौर में,
विकास नैनवाल जी का सराहनीय प्रयास है जिसका उत्साहवर्धन हम सबके द्वारा अवश्य किया जाना.चाहिए।
पढ़िए उनके द्वारा साझा की गयी 
अटल पैन्यूली जी की रचना जो युवा कवि और कथाकार हैं-
 
मैं हिमालय बोल रहा हूँ



दुश्मन हो रक्तबीज तो,
महाकाल बनता हूँ।
भारत की खोयी शाक्ति को,
मैं पुनः जागृत करता हूँ।
फिर , रक्तबीज के गर्म लहू से ,
अपना भीषण खप्पर भरता हूँ।
मैं खुद में समायें इतिहासों को तोल रहा हूँ,

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जीवन के सुखद पलों को जीने का खूबसूरती से 
सकारात्मकता का संदेश देती ज्योति सिंह जी की
रचना कम शब्दों में सबकुछ कह पाने में समर्थ है-
गुज़ारिश


कश्ती का रुख मोड़ दो
उमंग भरी मौजों की कश्ती
साहिल पे आने दो ,
फिजाओं में मस्तियों को 
लहराने दो
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और चलते-चलते
जाति-धर्म-सम्प्रदाय समाज के विकास में लगे घुन की तरह है जो मानवता की जड़ों को निरंतर खोखला कर रहा है।
सुबोध सर की विचारोत्तेजक लेखनी सतत प्रयत्नशील है 
अपने विचारों से आडंबर मुक्त समाज के रेखाचित्र बनाने में-
 
 सच्ची मुच्ची

ऐसे में जातिगत, उपजातिगत या धर्म-सम्प्रदायगत भेदभाव भला कैसे शून्य कर पाएगा हमारा तथाकथित बुद्धिजीवी समाज !? .. और तो और .. किसी ठोस कारणवश या अधिकतर तो अकारण ही राज्य के आधार पर, भाषा के आधार पर, खान-पान के आधार पर, पहनावा के आधार पर .. हम सभी मानव-मानव में भेदभाव करते हैं। इतना ही नहीं अपने से इतर राज्य, भाषा, खान-पान या पहनावा वाले इंसान या समाज को अपने से कमतर आँकने में या कमतर समझने-बोलने में और ख़ुद के लिए गर्दन अकड़ाने में हम तनिक भी गुरेज़ नहीं करते .. शायद ...
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आज इतना ही
कल मिलिए यशोदा दी से-

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16 comments:

  1. व्वाहहह मीठी बिटिया व्वाहहह
    मजा आ गया...
    मस्त अंक
    शुभकामनाएं..
    सादर..

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  2. प्रांजल ने गौरैया की चूँ चूँ पढ़वाई , नासवा जी ने शर्बत से फिर प्यास बुझाई , रविन्द्र जी ने कुछ देश की चिंता दिखाई ,विकास जी ने अटल की सुंदर कविता पढ़वाई ,और फिर ज्योति जी ने कर दी एक गुज़ारिश पेश और हम जा कर पढ़ आये सारे लिंक सच्ची मुच्ची ।।।
    सच ही ये सांध्य दैनिक चर्चा ज़बरदस्त रही।।।
    बधाई

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    1. अरे वाह दी,

      आपकी प्रतिक्रिया का निराला और रोचक अंदाज़ मन प्रसन्न हो गया।
      आपका स्नेह मिलता रहे।

      सादर।

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  3. प्रांजल की कविता पढ़ी मन सुखानुभूति से भर गया प्रिय श्वेता, ढेर सा स्नेह आप दोनों को।
    आज की प्रस्तुति बहुत शानदार रही ।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

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    1. आपका स्नेह सदैव मिलता रहा है दी।
      आशीष देते रहिये।
      सस्नेह
      सादर।

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  4. शानदार, खूबसूरत सांध्य दैनिक चर्चा,प्रिय श्वेता तुम्हारी मेहनत तारीफ ए काबिल है,प्रांजल की प्यारी कविता के लिए उसे भी बधाई हो, संगीता जी ने बड़ी खूबसूरती के साथ एक ही माला मे सभी चर्चा को पिरो दिया, सबकुछ बहुत ही बढ़िया है ,हार्दिक आभार,हार्दिक बधाई हो

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  5. दिगम्बर नासवा जी के ब्लॉग पर कई बार गई मगर कंमेंट बॉक्स नही खुल रहा, उनकी रचना के लिए उन्हे यही पर बधाई देती हूँ ।

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  6. प्रिय श्वेता, हमारी प्यारी बिटिया मनस्वी प्रांजल की बाल कविता पढ़कर मन मुदित हो गया। यथा माँ तथा बेटी। बहुत ही प्यारी रचना है जैसी कोई बच्चा लिख सकता है, अपने जैसी बाला मन की कोमलता को संजोये। प्रांजल को बहुत बहुत आशीष और प्यार। एक भावी कवियत्री की ये बाल रचना अनंत सृजन की नींव है। सजीव चित्र उसकी कल्पना की विराटता का दर्पण है।
    प्रिय गुड्डू यूँ ही आगे बढती रहे, जीवन में कल्पना के रंग भरती हुई यशस्वी और चिरंजीवी हो यही दुआ और कामना है। आभार इस सुंदर चित्र और रचना को साझा करने के लिए।आज के विशेष अंक में युवा कवि अटल पैन्युलि की कविता पढ़कर निशब्द हूँ। युवाओं का साहित्य से जुड़ना शुभ शकुन है। दिगंबर जी, सुबोध जी, ज्योति जी खूब कलम के धनी रचनाकार हैं, उनकी रचनाएँ पढ़कर बहुत अच्छा लगा। सभी को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई। तुम्हें आभार और प्यार सुंदर प्रस्तुति के लिए ❤❤🌹🌹

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    1. प्रिय रेणु ,
      आपसे यहीं मुखातिब हो रही हूँ । आज आपके ब्लॉग को छानने के इरादे से आपके ब्लॉग पर पहुंची थी लेकिन आपकी नई रचनाएँ जो मैंने पढ़ी थीं वो वहाँ नहीं ढूँढ़ पाई । कारण आप ही बता सकती हैं ।या तो मुझे नहीं दिख रहीं या कोई और कारण है ।।
      एक बार देखिएगा अपना ब्लॉग । सस्नेह

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    2. आदरणीय संगीता दीदी
      सादर नमन
      रेणुबाला जी क्षितिज के नाम से ब्लॉग बनाया है
      एक रचना का लिंक..
      https://renuskshitij.blogspot.com
      प्रेषित है
      सादर...

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  7. सुबोध जी का सारगर्भित लेख सभी को जरूर पढ़ना चाहिए।

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  8. दिगम्बर जी की रचना पर तकनीकी समस्या के कारण टिप्पणी नहीं हो पाई पर रचना तो शानदार है। दिगंबर जी को बधाई और शुभकामनाएं।

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  9. चूड़ी में, आँखों में, प्रेम की हाँ ही थी,
    इधर, उधर, सर कर के ना-ना बोला जब.
    चीनी सच में थी या ऊँगली घूमी थी,
    चम्मच कहीं नहीं था शरबत घोला जब. 👌👌👌👌👌🙏🙏🙏

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  10. नमन संग आभार आपका .. साथ ही मेरे आलेख को सकारात्मक बल देने वाली जाने-अन्जाने में आपकी आज की भूमिका के # से जुड़ा आपकी बिटिया का नाम "#मनस्वी प्रांजल" अपने साथ जातिसूचक उपनाम के नहीं होने के कारण अनायास मेरा ध्यान आकृष्ट किया।
    दोहरा आभार आपको आपकी अपनी बेटी के नाम के आगे जातिसूचक उपनाम नहीं चिपकाने के लिए .. बस यूँ ही ...

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  11. आने वाले पर्व की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं

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  12. सुन्दर लिंक्स से सुसज्जित अंक...मेरी वेबसाइट की पोस्ट को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार....

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