Tuesday, March 2, 2021

647 ....हौसलें कर बुलंद, ये मुकद्दर भी बदल जायेगा

सादर अभिवादन
मना किया गया था मुझे
कि मत जाओ नदी में नहाने
माघ पूर्णिमा का लालच
अब सिर पर चढ़कर बोल रहा है
वो आनन्द अभी तक है
सजा एक सप्ताह और चलेगी

आइए रचनाएं देखें

”मैं वसीयत कर रहा हूँ
कि मेरे मरने के बाद
मेरी आग उस शख़्स को मिले
जो अंधेरे के ख़िलाफ़
इक जलती हुई मशाल है
जिसका साहस कभी कुंद नहीं होता।”


पता चला मोहिनी चाची के परिवार
से पूछताछ के लिए पुलिस आई है । करूणा ने खड़े हो कर
बेसब्री से पूछा-"चन्दा मिल गई क्या ? तभी किसी ने जवाब
दिया- " पता नहीं… पुलिसकर्मी कह रहा है - चन्दा की ससुराल
में घर का पुनर्निर्माण हो रहा है …, आंगन की खुदाई में हड्डियाँ मिली है।"


प्राण का विचलित पतंगा
ढूँढता लौ को भटकता
हारता थकता नहीं पर
शीश अपना है पटकता
दीप का था गुल धुआँ भी
टीस सी अंतस कसकती।।

पर अब भी तुम
लिखना चाहती हो जीवन
और
हमारे रिश्ते को।
पलाश
सच
कितना सच है
ये
तुममे और मुझमें
समान महकता है।
पलाश
उम्र के दस्तावेज पर
अंकित है
और महकता रहेगा।


यकीं रखो तो जरा, आंच-ए- इश्क पर जानिब
वो संगे दिल ही सही, फिर भी पिघल जायेगा

नसीहतें मददगार बनें हरदम, जरूरी तो नहीं
ठोकरें पाकर ,वो खुद ब खुद ही संभल जायेगा

आज का दिन भले भारी है, तेरे दिल पे बहुत
हौसलें कर बुलंद, ये मुकद्दर भी बदल जायेगा


लब्ध था, वो आकाश,
पर, आया ना, वो भी अंकपाश,
टिम-टिमाते से, वो तारे,
क्यूँ कर, देखता!
.....
बस
सादर


3 comments:

  1. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार आदरणीया 🙏 सादर

    ReplyDelete
  2. बेहतरीन रचनाओं के संकलन में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार यशोदा जी ।

    ReplyDelete
  3. खूबसूरत रचनाओं का ये अंक...। बहुत आभार और सभी रचनाकार साथियों को बधाई।

    ReplyDelete