Friday, March 12, 2021

658.....चिर बसंत तुम मनके

 सांध्य दैनिक अंक में

आपसभी का स्नेहिल अभिवादन

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प्रेम जीवन का सुखद एहसास है,  निष्काम भाव से समर्पित प्रेम पुष्प की खुशबू महसूस करिये रेणु दी की लेखनी से-  

मन-पाखी की उड़ान

बाहर पतझड़  लाख 
चिर बसंत तुम  मनके 
 सदा गाऊँ तुम्हारे गीत 
 भर - भर  भाव  पुनीता !

 बिन देखे रूह बेचैन 
 हर दिन राह निहारे 
लगे  बरस   पल  एक 
 साथी !जो  तुम बिन बीता !

 रेत में दबी स्मृतियों की
सुगबुगाहट समय की लहरों में
तैरती रहती है पढ़िए गहन भावनाओं से गढ़ी शांतनु सर की रचना -

में हमारी मुहोब्बतें कम न थी, म'यार ए
वफ़ा फिर भी रह गई बेअसर, वक़्त
के साथ उतर जाते हैं सभी जश्न
के लहर। वो नज़दीक आया
तो दिल में चाहतें न
रही, दूर जाते
ही जीस्त
में बढ़
गयीं

परमपिता के विशुद्ध स्वरूप का अलौकिक, अद्भुत प्रार्थना,
कुसुम दी के समृद्ध शब्दकोश के
 अनुपम शब्दावली और 
अध्यात्मिक भावों से पूर्ण रचना 

सत्य शाश्वत शिव की सँरचना 

आलोकिक सी में गतिविधियाँ हैं

छुपी हुई है हर इक कण में

अबूज़ अनुपम अदीठ निधियाँ

ॐ निनाद में शून्य सनातन 

है ब्रह्माण्ड भर समाहित ।। 


मनभावन बिंब और रूहानी सुकून की सहज,सरल,किलकती अभिव्यक्ति

जयतुषार सर की रचना में शृंगार रस का  सबसे खूबसूरत रूप पढ़िए-


आज फिर
मौसम सुहाना है
काम का छोड़ो बहाना यार ,
झील में
खिलते कँवल के फूल
राजहंसों का मिलन अभिसार,
बादलों में
चाँद सोया है
तुम हथेली पर अभी दीये जला दो ।
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जीवन के भरण-पोषण के लिए किये गये कर्म के आधार पर व्यक्तित्व का विश्लेषण करना आसान होता है पर क्या सचमुच? पति-पत्नी का रिश्ते की गहनता,मनोभावों को दक्षता एवं पूरी ईमानदारी से निभाया गया अरूण साथी सर का रोचक संस्मरण

लखनऊ में काठगोदाम ज्यादा देर तक रुकी है। खैर, कोरोना के बाद रेलवे के हालात  बदले-बदले से हैं। बगैर कंफर्म टिकट के यात्रा कोई नहीं कर सकता था तो बहुत भीड़ बोगियों में नहीं थी। हर बोगी में कुछ सीटें खाली थी। तभी अचानक रेलगाड़ी ने चलने की सूचना दे दी। पति बेचारा डब्बे से नीचे उतर कर खिड़की पर आ गया। ठीक से जाना। इस बैग में यह रखा हुआ है। उस बैग में वह रखा हुआ है। समझाते जा रहा था। मोहतरमा गुस्से में ही थे। रेल खुल गई। रेल के खुलते ही दस से पंद्रह मिनट के बाद सोने की तैयारी के बीच मोहतरमा ने बुर्का उतार दिया। गहरी सांस ली। ऐसे जैसे आजदी मिली हो। बालों को लहराया। उसमें अपनी उंगलियों को बड़े अंदाज से चलाया। हाथों में मेंहदी। हरी हरी डिजाइनदार चुड़ियां। कानों में बड़ा का झुमका। बन ठन कर।

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आशा है आपको यह अंक पसंद आया होगा।
आज इतना ही।







7 comments:

  1. उव्वाहहहह..
    अब अवकाश मिलने वाला है
    कम्प्यूटर लैब से...
    अप्रतिम अंक..
    सादर

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  2. बहुत अच्छी सांध्य दैनिक मुखरित मौन प्रस्तुति

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  3. सुंदर प्रस्तुति, सांध्य दैनिक में रचनाओं पर व्याख्या के साथ देना काफ़ी आकर्षक लगा।
    शानदार लिंक चयन,सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
    सादर, सस्नेह।

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  4. बहुत सुंदर । सभी लिंक्स बेहतरीन ।कसाई कुछ अलग सी कहानी कहूँ या संस्मरण सोचने पर मजबूर करती है ।
    चर्चा कार की विशेष टिपण्णी सटीक और सार्थक हैं ।बधाई ।

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  5. सुंदर रचनाओं के शानदार लिंक्स के चयन और संयोजन के लिए हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाएं..

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  6. प्रिय श्वेता , आज पांच लिंकों और मुखरित मौन में तुम्हें पुराने रंग में देखकर अपार ख़ुशी हो रही है | प्रिय सखी कामिनी ने अपने ब्लॉग पर लिखा हैकि संगीता दीदी के ब्लॉग पर पुनः सक्रिय होने से मानों ब्लॉग जगत में पुनः एक सौहार्द की नव आभा का उदय हो गया है | ब्लॉग जगत में साढ़े तीन साल पुरे होने के बावजूद मैं मूढ़ उनसे ज्यादा परिचित नहीं थी| लेकिन सच में एसा ही मुझे भी महसूस हुआ | तुम्हें पुराने रूप में देख कर संतोष हुआ | सभी रचनाकारों का मनोबल बढाती तुम्हारी टिप्पणियों ने जादू सा कर दिया | बहुत दिन बाद मंच पर आई मेरी रचना को खूब पाठक मिले | समस्त पाठक वृन्द का कोटि आभार | तुम्हें बहुत बहुत आभार और सभी सम्मिलित रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई | सभी रचनाएँ मनभावन और सार्थक हैं |

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