Thursday, March 18, 2021

664 .."समय" एक ऐसी "चीज़" है, जो गिनते रहेंगें तो "कम" पडेगा,

सादर नमस्कार...
कौन क्या कर रहा है
कैसे कर रहा है
क्यों कर रहा है

इन सब से आप
जितना दूर रहेंगे
उतना ही खुश
रहेंगे।
अब पिटारा खोलें

मैं कहती हूं कुछ,
वे सुनते हैं कुछ 
और करते हैं कुछ 
दोनों को पिंजरा
पसंद नहीं 
दोनों समय की पाबंद नहीं


ताक में बैठे हैं
तुम्हारे बत्तीस दाँत,
मौक़ा मिलते ही
टूट पड़ेंगे उसपर.


अंधेरे में शैव्या के पति का पैर सुली से टकरा गया जिससे  ऋषि को अत्यधिक कष्ट हुआ। उन्होंने तुरंत शाप देते हुआ कहा कि जिसने भी सुली को हिलाया है सूर्य निकलते ही उसकी मृत्यु हो जाएगी। शैव्या ने ऋषि को समझाने का प्रयास कि अंधेरा होने की वजह से ऐसा हुआ इसलिए वो अपना शाप वापस लेले। माण्डव ऋषि ने शाप वापस लेने से मना कर दिया। शैव्या ने ऋषि को चुनौती देते  हुआ कहा कि अगर वो अपना शाप वापस नहीं लेंगे तो वो कल सूर्य उदय ही नहीं होने देगी। और फिर ऐसी ही हुआ। जब सूर्य नहीं निकला तो सृष्टि में हाहाकार मच गया।


बारीक सी पर गहन
पावन धारा बहती अन्तस में ...
वो गुप्त गोदावरी फेनिल तरंगों में
सबसे छिपा करती निरन्तर समाहित 
सारा कल्मष 
सारा विष
सबका वमन
ध्यानस्थ...मंथर गति से प्रवाहित
....
आज बस
देवी जी को आज वेक्सीन लगवाकर आए हैं
वे बाग-ए-चमन में आराम कर रही है
सादर



5 comments:

  1. सुंदर सार्थक लिंकों से सजा आज का अंक बहुत अच्छा है। आपको बहुत-बहुत धन्यवाद। शैव्या में जो चित्र आपने लगाया है वो एकदम उपयुक्त है। आपका हार्दिक आभार और शुभकामनायें।

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  2. आभार..
    बढ़िया अंक..
    सादर..

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  3. सारे ही लिंक्स बड़े खूबसूरत ।बढ़िया चयन ।

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  4. आदरणीय दिग्विजय अग्रवाल जी, नमस्कार ! सुंदर लिंक्स के चयन और संयोजन के लिए आभार एवम शुभकामनाएं, मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपको मेरा हार्दिक नमन एवम वंदन ।

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  5. बढ़िया चयन।मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार

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