Sunday, November 29, 2020

554 ...अब सर्दी में आग लगी , जलने लगे अलाव

सादर अभिवादन..
आज देर हो गई.....
कोई हर्ज नहीं
अलविदा नवम्बर 2020
जाना तो होगा ही
रुकने के लिए कौन आया है
मात्र पाँच वस्तुएँ रुकेंगी
हवा,मिट्टी,पानी,
आग और धूप..
आइए रचनाएं देखें..

बस रुकना मना है... 
अमावस्या की रात 
जो चल रही 
न मशाल लेकर राह 
दिखाएगा कोई ।





मन !
जीवन के धरातल पर* *
उग आयें जब
अभीप्साओं के बीज
आँखों को तर करने लगे
दो बूँद अश्क़ 
वर्ष दर वर्ष मिटने लगे 
उम्र की स्याही





खोल दी आज खिड़कियां रश्मियों ने आवाज दी है
हो गया सबेरा परिंदों की टोलियों ने आवाज दी है

मिट पायी नही कभी जिन्दगी की ये तल्खियाँ
आज किसी  की भोली मुस्कुराहटों ने आवाज दी है

हर कदम पर तिजारत से भरी जिंदगी है
न जाने किधर से आज इंसानियत ने आवाज दी है





अब सर्दी में आग लगी , 
जलने लगे अलाव
अपने मन को आंच मिली, 
होने लगा लगाव

अपनापन था कहा गया, 
कहा गये वो लोग
होकर वत्सल बात करे,  
करते छप्पन भोग
....
आज बस इतना ही
सादर




5 comments:

  1. शुभ संध्या ...
    देर पर दुरुस्त ... हमेशा की तरह वैविध्य प्रस्तुति।

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    1. प्रतिक्रिया के लिये आभार

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  2. उम्दा रचनाओं का प्रस्तुतिकरण हमारी रचना को शामिल करने के लिए आभार।

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  3. रचना को स्थान देने के लिए आभार

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  4. हमेशा की भांति उत्कृष्ट रचनाओं का संकलन।
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार।
    सादर।

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