Thursday, November 26, 2020

551 ..एक रणछोड़ की झूठी दास्तान सुन रहे हैं

सादर वन्दे
कल देवता जागे
आज एक विवाह हो गया
वर-वधू के अलावा मात्र
दस व्यक्ति थे
क्या शादी थी...
शादी होते ही वधू लखपति हो गई
वधू पक्ष ने समारोह में होने वाला खर्च
सारा का सारा वधू के एकाऊण्ट में 
जमा करवा दिया
अनुकरणीय उदाहरण
....
अब रचनाएँ...




दो गज की दूरी रखिए,
सुरक्षित रहिए,
पर याद रहे 
कि दिलों के क़रीब होने पर 
कोरोना के दिनों में भी 
कोई पाबंदी नहीं है. 





अनेक सभ्यताओं ने उत्थान - पतन
देखा, अनेक राजाओं के मुकुट
उतारे गए, कितने ही
नदियों के तट
बदल गए,
कितने
ही महासिंधु मरुस्थलों में तब्दील हो
गए, निःसृत अंधकार में फिर
भी उम्मीद की नीलाग्नि
जलती रही,





दिल की ज़मीं पे गूँजते अल्फाजों की ,
तहरीर तुम्हारी हों ज़रूरी तो नहीं !

माना की हर एक खेल में माहिर बहुत हो तुम ,
हर मात हमारी हो ज़रूरी तो नहीं !





कुछ महीने पहले स्कूल की एक कॉपी मिली...
उंगलियां पन्ने पलटने को हुई।
दफ़्तर को देर हो रही थी,
उंगलियों से कहा फिर कभी सही...






कबाड़ में बैठे हुऐ कबाड़ी
आँख मूँदे हुऐ
जैसे कुछ इत्मीनान गिन रहे हैं 

फितरत छिपाये अपनी
लड़ाके सिपाही
एक रणछोड़ की
झूठी दास्तान सुन रहे हैं

‘उलूक’
रोने के लिये कुछ नहीं है
हँसने के फायदे कहीं हैं
सोच से अपनी लोग खुद
बिना आग बिना चूल्हे
भुन रहे हैं ।
..
बस
सादर


5 comments:

  1. सुन्दर संकलन. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.

    ReplyDelete
  2. वाह ! बहुत सुन्दर सूत्रों का चयन ! मेरी ग़ज़ल को स्थान देने के लिए आपका ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार ! सप्रेम वन्दे दिव्या जी !

    ReplyDelete
  3. सभी रचनाएँ अपने आप में अनूठी हैं, हमेशा की तरह मुखरित मौन दिनांत की क्लान्ति में एक नया उत्साह भरता है, मुझे स्थान देने हेतु आभार - - नमन सह।

    ReplyDelete
  4. आभार दिव्या जी, बेहतरीन-निरंतर प्रयास है आप सबका!

    ReplyDelete