Saturday, November 28, 2020

553 ...तू तो देखती-सुनती कम है फिर तुझे कैसे पता चला

सादर वन्दे
आज क्लालेस बंद है
आराम है...य़ा बच्चे 
ब्लैक फ्राइडे मना रहे होंगे
खैर जो भी हो..
आज की रचनाएँ पढ़ें..

'तू तो देखती-सुनती कम है
फिर तुझे कैसे पता चला'

तू मुझे बतियाती-
बेटा, 'एक मां की भले ही नजर कमजोर पड़ जाए
लेकिन उसकी दिल की धड़कन कभी कमजोर नहीं पड़ती
उसे आंख-कान से देखने-सुनने की जरुरत नहीं पड़ती' 


खो जाते हैं बहुत कुछ सुबह से रात,
खो गए न जाने कितने जकड़े
हुए हाथ, गुम हो जाते हैं
अनेकों प्रथम प्रेम
में टूटे हुए मन,
छूट जाते
हैं न





उम्र चढ़े, आयुष बढ़े,
खुशी की, इक छाँव, घनेरी हो हासिल,
मान बढ़े, नित् सम्मान बढ़े,
धन-धान्य बढ़े, आप शतायु बनें,
आए ना मुश्किल!




उफ्फ्फ ! आज लाडली को फिर छू गया कोई 
गहरेऽऽ, अनंत गहरे, घाव फिर दे गया कोई 

न जाने कभी भरेंगे ,भी ये
या नित होते रहेंगे हरे ये 



निष्पलक देखता रहा मैं, 
जलता बुझता रहा, 
कल रात भर, 
निर्मेघ आकाश,
अर्धोष्ण तंदूरों में, 
कहीं सो से गए, 
सिमटे हुए मधुमास,
....
अब बस
आज दीदी के पास जाऊँगी
सादर




 

4 comments:

  1. बेहतरीन..
    आभार ..
    सादर..

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  2. शुभ संध्या ....
    सुन्दर प्रस्तुति।

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  3. मुग्ध करता है मुखरित मौन हमेशा की तरह, मुझे जगह देने हेतु ह्रदय से आभार - - नमन सह।

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  4. आपके सुन्दर चयन और सुन्दर प्रस्तुति के लिए आपका आभार दिव्या जी ।मेरी कविता को शामिल करने के लिए हृदय से नमन।

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