सादर नमस्कार
पठाकों का आवाज
में कमी नज़र आई
अच्छी आदतें लागू हो रही है
प्रिय, प्रीत के गीत सुनाओ,
अंधियारे मे दीया जलाओ.
शब्द मेरे और सुर हो तेरे,
जीवन से हो दूर अंधेरे.
विपदा की बदली जब घेरे,
सजनी मेघ राग तुम छेड़े.
छंटे घन हो सुख के उजियाले,
बांध समा कुछ ऐसा गा ले.
जब आईना देखने की उम्र थी,
तब हम ख़ुद को सजा ही न सके,
वही मध्यमवर्गीय दृष्टि -कोण,
लोग क्या कहेंगे, छुप के यूँ ही देखते रहे
वसंत को पतझर में ढल जाते हुए,
बहुत कुछ था हमारे दिल में,
खुल के तुम्हें कभी बता ही न सके,
शीशे को चट्टान
बना देती है
धरती को
आसमान बना देती है।
भूले को
घर का राह दिखाकर
भटके को
इंसान बना देती है।
कुछ
रोशनी
की
करनी हैं
बातें
और
कुछ भी
नहीं
दीवाली
अलग है
इस बार की
पहले
जैसे
अब नहीं
...
अब शायद बस
सादर
अब शायद बस
सादर
आभार..
ReplyDeleteसादर शुभकामनाएँ..
आभार दिग्विजय जी। शुभ हो दीपोत्सव सभी के लिये मंगलकामनाएं।
ReplyDeleteदीपोत्सव की असंख्य शुभकामनाएं सभी को । मेरी रचना को सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार - - नमन सह।
ReplyDeleteशुभ दीपोत्सव!!!
ReplyDeleteदीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ
ReplyDeleteउम्दा लिंक्स चयन हेतु साधुवाद
बहुत सुंदर रचना प्रस्तुति
ReplyDeleteसुंदर रचनाओं का संकलन
ReplyDeleteशुभकामनाएँ
व आभार