Tuesday, November 3, 2020

528 ...ढ़ँक लूँ, भला कैसे ये घायल सा तन

सादर वन्दे
आज तीज है
कल मेकप का दिन है
नाराज न होइए हम भी करवाएँगे
मेकप...और इन्तजार करेंगे चांद का 
आज जबरदस्ती आएं हैं...
कल आना नहीं न चाहते थे

आज की रचनाएँ ....



मुझे मालूम है तुम भी हो इस
रात के एकाकी यात्री,
तलाश है तुम्हें
भी निरापद
सराय
की,
यहाँ हर कोई चाहता है उपहार की
वापसी, कोई नहीं रखता याद





चलती चली जाती हैं,
किसी पटरी से मिलती हैं,
तो किसी से बिछड़ती हैं,
कभी जंगलों से गुज़रती हैं,
तो कभी रेगिस्तानों से,
कभी खेतों से,
तो कभी मैदानों से.





गर, सुन लेते मन की, तो आते न तुम!
दर्द में सिहरन, यूँ बढ़ाते न तुम!
दे गई पीड़, तेरी छुअन!
सर्द आहों में भर के, सारे ही गम,
ले आए हो, ठिठुरण!





अमल अनोखा एकांत यहाँ
जगत यह जिसको भर न पाए,
अजर, अगोचर वह अनदेखा
गीत न जब तक खुद गुंजाये ! 





ये सुधियाँ भी 
हुई बावरी देखो 
चंचल मन।
 … 
मीठी-सी यादें 
कड़वी जिंदगी का 
टॉनिक जैसे।
....
बस
कल की कल
सादर

7 comments:

  1. बेहतरीन चयन..
    आभार..
    सादर..

    ReplyDelete
  2. करवाचौथ की बहुत बहुत बधाई, सुंदर लिंक्स, आभार !

    ReplyDelete
  3. वाह, मेरी ही रचना से चुनी गई पंक्ति "ढ़ँक लूँ, भला कैसे ये घायल सा तन..." के चयन से शीर्षक निर्माण हेतु आभार।
    आभार पटल------

    ReplyDelete
  4. ख़ूबसूरत रचनाएँ और आकर्षक प्रस्तुति मुग्ध करता हमेशा की तरह - - मुझे शामिल करने हेतु आभार - - नमन सह।

    ReplyDelete
  5. ख़ूबसूरत प्रस्तुति. मेरी कविता शामिल करने हेतु आभार.

    ReplyDelete
  6. वाह बहुत ही शानदार प्रस्तुति ... जिसमें शामिल सदा ...
    आभार सहित शुभकामनाएं

    ReplyDelete