सादर वन्दे...
आज बारस के ऊपर तेरस है
कल तेरस के ऊपर चौदस होगा
जो भी हो..जैसा भी हो
मनानी तो होगी फीकी दिवाली
न चीनी फटाके हैं और न ही चीनी लाईटें
फिर भी दिए तो है न..
...
रचनाएँ कुछ यूँ है...
जो भी हो..जैसा भी हो
मनानी तो होगी फीकी दिवाली
न चीनी फटाके हैं और न ही चीनी लाईटें
फिर भी दिए तो है न..
...
रचनाएँ कुछ यूँ है...
मन के दीप जलाओ कि आया
दीपावली का त्यौहार
यूं तो दिए बहुत जलाए पर
मन के कपाट खोल न पाए |
जीवन भर प्रकाश के लिए तरसे
दहेजयुक्त 'अरेंज्ड मैरिज' वाले
मड़वे में बैठे एक सजे-धजे वर
और किसी 'जिगोलो'-बाज़ार में
प्रतीक्षारत खड़े .. पुरुष-वेश्य में,
माना कि होंगे अनगिनत अन्तर,
पर है ना एक समानता भी मगर ?
ज़र्द पत्तों की तरह एक दिन टूट
जाएंगे सभी ख़्वाब, टहनियों
के सिवा कुछ न होगा
ज़िन्दगी के पास,
कुछ ज़ख्म
के निशां,
कुछ
पुराने चादर के देह गंध, दुआओं
के कुछ पैबंद, दहलीज़ में
खड़ी रात मांगती है
मुझ से उधार
का हिसाब।
नीले निर्मल व्योम से, चाँद गया किस ओर।
दीपक माला सज रही, जगमग चारों छोर।
दीप मालिका ज्योति से, झिलमिल करता द्वार।
आभा बिखरी सब दिशा, नही हर्ष का पार।
...
बस
आप सभी को शुभकामनाएँ
सादर
बस
आप सभी को शुभकामनाएँ
सादर
व्वाहहहह..
ReplyDeleteआभार..
सादर..
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteदीपोत्सव के आलोक से सजा सांध्य अंक मुग्ध करता है - - सभी को दीपावली की असंख्य शुभकामाएं, रचना शामिल करने हेतु आभार, नमन सह।
ReplyDeleteशुभ संध्या |
ReplyDeleteउम्दा लिंक्स आज की |मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद |
Nice
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