सादर अभिवादन
काफी से अधिक
सूनसान है
नदी - तालाब के तट
शासनादेश भी है और भय भी है..पर
पूजा तो शुरु हो गई है ...एक नए अंदाज में
एक परिवार ने पूरा स्विमिंग पूल बुक कर लिया है
तीन दिनोंं के लिए बीस परिवार के लोग इकट्ठे
अर्ध्य दे आए सुबह
एक और परिवार ने पंद्रह दिन पहले ही
पानी की टंकी ही बनवा ली
अपने घर के छत पर वहां पर दो परिवार के लोग
अर्ध्य -पूजन किए..और भविष्य के लिए
सुरक्षित भी कर लिए..
कुछ दिनों बाद कमल खिले दिखेंगे उस टंकी में
...
अब कुछ रचनाएँ....
एक और परिवार ने पंद्रह दिन पहले ही
पानी की टंकी ही बनवा ली
अपने घर के छत पर वहां पर दो परिवार के लोग
अर्ध्य -पूजन किए..और भविष्य के लिए
सुरक्षित भी कर लिए..
कुछ दिनों बाद कमल खिले दिखेंगे उस टंकी में
...
अब कुछ रचनाएँ....
सरहद पे खड़ा
ढूँढता हूँ वतन मेरा
फेरूँ नज़र जिस तरफ़ भी
उजड़ा पड़ा है
चमन मेरा
मर के भी न मिली
मिल्कियत ज़मीं की
इस ओर रूह
उस तरफ़ जिस्म
दफ़न है मेरा
न कभी सपनो में सोचा था।।
ये समाज कितना अलग है।
छुआ - छूत अमीरों का बोलबाला है।।
कई प्रकार के लोग है यहां पर।
कुछ दयालु और कुछ कठोर दिल रहते यहां पर।।
कैसा सम्बोधन ! अनोखा भीगा सम्बोधन
अभिवादन के लिए सारा शब्दकोश
ढूंढ आया होगा तुम्हारा मस्तिष्क
कि बाहर से अकेले पक्षी की
हूक सिमट आयी होगी कमरे में
मौसमी मुस्कान
होठों पर सहेजे
आंसुओं से
तरबतर रुमाल
किसके पास भेजें
डाकिया
लाया हमेशा
पत्र ग़ैरों के।
एक मार्मिक कहानी
अब अपनी मुट्ठी के अन्दर छिपाने की नाकाम कोशिश करते हुए
माँ के करीब आकर सिसकते हुए बोली;
“हमका माफी दे दो माँ!.....हमका रात को पढ़ना है,
बत्ती चाहिए....सेठानी तो नौ बजे लैट बुझा दैवे।
मोमबत्ती खरीदी तो
तू डाँटी कि खरच बढेगा,
10 रुपै रोज में 300 रुपै खरच महीने का....
दिन में भाई-बहिन देखूँ तो
पढ़ाई छूट जावे....कल रात सेठानी को छत पर
मोमबत्ती जलाते देखी थी मैं .....
बार-बार जलायी तो भी तेज हवा से वह बुझती रही ,
सुबह कचड़े में फैंकी सेठानी तो मैं उठा दी, सोची इहाँ भी होंगी
तो दौड़कर ला दूँगी .... कहते हुए वह माँ से चिपक कर वह
रोने लगी । माँ की आँखों से भी आँसू बहने लगे......
माँ - बेटी की बात सुनकर सभी बहुत दुखी हुये,
पश्चाताप उनके चेहरे से साफ झलक रहा था ,
और मन में थी असीम सहानुभूति
....
बस
सादर
बस
सादर
व्वाहहहहहह
ReplyDeleteशुभकामनाएं..
सादर..
उत्कृष्ट रचनाओं का संकलन
ReplyDeleteबधाई एवं शुभकामनाएंँ
प्रिय यशोदा अग्रवाल जी,
ReplyDeleteअत्यंत प्रसन्नता का विषय है कि आपने मेरे नवगीत को 'सांध्य दैनिक मुखरित मौन' में शामिल किया।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार !!!
शुभकामनाओं सहित-
डाॅ शरद सिंह
उत्कृष्ट रचनाओं से सजी शानदार प्रस्तुति
ReplyDeleteमेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
वाहः
ReplyDeleteरोचक लेखन पढ़कर अच्छा लगा