Wednesday, November 18, 2020

543 ...जिल्द का आईना था, दिल में उतरने वाला

सादर वन्दे
तीन दिनी उपवास
मातुश्री की
पूजा-अर्चना
चालू हो गई है 
व्यस्तता है आज
फिर भी कुछ रचनाएँ लाए हैं
......


जिल्द का आईना था, 
दिल में उतरने वाला,
जब क़रीब से पढ़ा उसको, 
तो पाया वो महज शब्दों का था माया -जाल, 
भीड़ भरे चौक में ख़्वाबों का तिलिस्म सरे -आम बेचने वाला,





पहलू सारे झाँक लो,
तथ्य  सारे जान  लो,
तर्क तोल - मोल लो,
मस्तिक्ष अपने खोल लो,
तुलना करोगे किस से तुम?
मेरे भारत राष्ट्र की  !


आकाश इतना छोटा तो नही
और इतना थोड़ा भी नही .
सारी ज़मीन ढांप ली साहिब
मेरा इतना सा आँगन
क्यूँ नही ढांप ले सकता ..





कई खट्टी मीठी यादें
दिल पर दस्तक देतीं
जब अधिकता उनकी होती
कुछ भुला दी जातीं
बहुत सी  याद रह जातीं|
स्मृति पटल पर उकेरी जातीं
जीवन की सच्चाई


ज्ञान देना गीता का  तो, सरल है  
पर खुद में उतारना बड़ा कठिन है।
हमारे आस पास डिग्री रहित 
ऐसे कई डॉक्टर, इंजीनियर, 
कथावाचक, समाज सेवक मिल जाएंगे।
.....
इज़ाज़त
सादर

5 comments:

  1. अप्रतिम प्रस्तुति
    आभार
    सादर..

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  2. बेहतरीन रचना प्रस्तुति

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  3. मुखरित मौन हमेशा की तरह निषिपुष्पों की सुरभि बिखेरता हुआ मुग्ध करता है, मुझे स्थान देने हेतु, हार्दिक आभार - - नमन सह।

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  4. धन्यवाद मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए |

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  5. मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार दी।
    सादर

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